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प्रकरण रत्नाकर जाग पहेलो.
अर्थः
दिवस ब्रह्मचर्य प्रतिमा लगण जघन्य श्रावक होय, अने नवमी परि ग्रह त्याग प्रतिमा लगण मध्यम श्रावक थाय, दशमी अगीयारमी प्रतिमानो धणी उत्तम श्रावक होय. एटले प्रतिमानुं वृत्तांत कयुं ॥ ४५ ॥ इतिप्रतिमा अधिकार समाप्त ॥ दवे पांचमा गुणस्थाननी स्थिति कहेबे :- :- पंचम गुनस्थानक स्थितिः॥ चोपाईः ॥ - एक कोटि पूरव गनिलीजे; तामें आठ वरष घट कीजै; यह उत्कृष्ट काल थिति जाकी, अंतर मुहुर्त्त जघन्य दसाकी ॥ ४७ ॥
अर्थः- एक कोटि पूर्ववर्षनी संख्या कीजे, तेमां आठ वर्ष घटाडीए. पी जे वर्ष रहे ते देशप्रति गुणस्थानकनी उत्कृष्टि काल स्थिति जाणवी, अने आदेशत्रत्ति गुण स्थाननी जघन्यदशानी स्थिति एक अंतर्मुहूर्त्त कालमान होय ॥ ४७ ॥
दवे एक पूर्वकालनी वर्ष संख्या कहे बेः
पूर्वसंख्या कथनः
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॥ दोहराः ॥ - सत्तर लाख करोम मिति, बप्पन सहस करोडि; एते वरष मिलाइ करि, पूरव संख्या जोम ॥ ४८ ॥
अर्थः- सिंतेरलाख कोटि वर्ष एटली मिती के० प्रमाणता उपर उपन हजार कोटि वर्ष मेलवीये त्यारे पूर्वकालनी जोमिनी वर्ष संख्या थाय, तेना ७०५६०००००००००० एटला अंक थाय. लोक व्यवहारमां सात पद्म पांच खर्व साठ श्रब्ज कहिए. ॥ ४८ ॥ हवे अंतर्मुहूर्त्त कानुं जघन्य उत्कृष्ट प्रमाण कहुंनुं :- अथ अंतमुहुरतप्रमान ॥ दोहराः ॥ - अंतर मुहुरत है घमी, कबुक घाटि उतकृष्ट; एक समे कलाजली, यंत
कनिष्ट ॥ ४७ ॥ यह पंचम गुनथानकी रचना कही विचित्र अब हम गुन यानकी, दसा कहुं सुनु मित्र ॥ ५० ॥
अर्थः- बेघमीमां एक समय Jो थाय, त्यारेतो जत्टक अंतमुहूर्त्त याय ने एक श्राव लिने एक समय ते कनिष्ट के० जघन्य अंतमुहूर्त्त काल होय. ए दिगंबर संप्रदा यथी बे ॥ ४५ ॥ एम देशत्रति पांचमा गुणस्थाननी विचित्र रचना कही. हवे हे ! मित्र ! वा गुणस्थाननी दशा कहुंनुं ते सांजलो ॥ ५० ॥
हवे प्रमत्तनामे वा गुणठाणानी अवस्था कहुंलुं - छाथ प्रमत्तगुनस्थानकः
॥ दोहराः ॥ - पंच प्रमाद दशा धरे, अवाइस गुनवान; थविर कल्प जिन कल्प जुत, हे प्रमत्त गुनथान ॥ ५१ ॥
अर्थः- धर्मरागादी पांच प्रमादनी दशा धारेवे. अने साधुना श्रठ्यावीस गुणो धारे .यावीस गुण कह्या ते दिगंबर संप्रदाय थी. थिवर कल्पथी थिवरनो श्राचार जिनकल्पथी जिननो आचार तेणेकरी युक्त बे. एम प्रमत्त गुण स्थान होय
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