SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 213
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री समयसारनाटक हवे नवमी परिग्रह प्रतिमानो विवरो कहे :- छाथ नवमी प्रतिमा यथाः॥ चोपाईः ॥ - जो दसधा परिग्रहको त्यागी; सुख संतोष सहज वैरागी ; समरस चिंतित किंचित ग्राही ; सो श्रावक नौ प्रतिमा वाही ॥ ४२ ॥ र्थः - नवविध परिग्रहनो त्यागी होय, सुख संतोष सहित वैरागी होय, उपशम रसथी जींज्यो रतो होय, किंचित् ग्राही कहेतां कंईएक प्रशन वशननुं ग्रहण कर ना होने बीजी क्रिया सर्वे आठमी प्रतिमानी परे होय, ते श्रावक नवमी प्रतिमानो धरनार होय. ए प्रतिमा नवमास लगी रहे ॥ ४२ ॥ ७८३ हवे दसमी पापोपदेश त्याग प्रतिमा कहेतेः - छाथ दसमी प्रतिमा यथा:॥ दोहराः ॥ - परकों पापारंजको, जो न देश उपदेश; सो दशमी प्रतिमासहित, श्रावक विगत कलेश. ॥ ४३ ॥ अर्थः- नवमी प्रतिमा लगए गृह कुटुंब परिवारने कदाच् पापनो उपदेशापे, पण थाही पापा रंजनो उपदेश त्यागे ते श्रावकने दशमी प्रतिमासहित जागिये. तेज श्रा वक क्लेश रहित थयो एम जावं. ॥ ४३ ॥ हवे ग्यारमी उचित्तग्राही प्रतिमानो विवरो कहे बे: - ग्यारमी प्रतिमा यथा:॥ चोपाईः ॥ - जो सुबंद वरते तजि मेरा, मठमंरुपमहिं करे वसेरा; उचित आहार ain विहारी; सो एकादश प्रतिमा धारी ॥ ४४ ॥ अर्थः- जे आपणां घर बार मेरा बांडीने खवंदे वर्त्ते, यने मठ मंरुपमां वास करे, श्राधाकर्मि आहार त्यागे, योग्य आहार ले अने उडुंग व्यवहारी थइ साधु जेवो थाय, ते अगीश्रारमी प्रतिमानो धरनार थाय. ए श्रावकनी करणी बे. ॥ ४४ ॥ वे ग्रमी प्रतिमानी व्यवस्था कदेबे ::-थ एकादश प्रतिमा यथा:॥ दोदराः ॥ - एकादश प्रतिमा दशा, कही देशव्रत मांहि; वही अनुक्रममूलसों, ही बूटी नहि ॥ ४५ ॥ अर्थ:- अगर प्रतिमानी दशा पांचमा देशविरति गुणस्थानक मां कही. हवे प्रथमथी जे आगलनी प्रतिमा ग्रहण करेली बे तेतो अनुक्रमे ग्रहीज रह्यो बे, पण तेथी बुटो नथी ने चढति चढति क्रिया करतो रहेबे ॥ ४५ ॥ हवे ग्यार प्रतिमाधारीमां जघन्य, मध्यम, उत्कृष्ट, दशा कहे : अथ जघन्य, मध्यम, उत्कृष्ट दशा कथन: ॥ दोहराः ॥ षट प्रतिमा ताई जघन, मध्यम नव परजंत; उत्तम दशमी ग्यारमी, इति प्रतिमा विरतंत ॥ ४६ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002165
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages228
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy