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________________ श्रीसमयसार नाटक. ७५१ मकित कला सोहनी; सोइ मोद साधक कहायो ताके सरवंग, प्रगटी शगतिगुन थानक श्रारोहनी. ॥ २१॥ सोरठीः ॥-जाकी मुगति समीप, नई नव स्थिति घट गई; ताकी मनसा सीप, सुगुरु मेघ मुकता वचन. ॥ २२॥ अर्थः-जे जीवने अधो के यथाप्रवर्ति करणनो अने अपूर्व करणनो तथा अनि वृत्त करणनो लान थयो, एटले ए सम्यक्त्व प्राप्तिनां त्रण करण ले तेनो लान थयो, श्रने जेने गुरु वचननी बोहनी थई एटले गुरु उपदेशनो लान थयो, तेथी अनंतानु बंधी क्रोध, मान, माया, अने लोन तथा अनादिकालनी मिथ्यात्व मोहनीय, मिश्रमो हनीय अने सम्यक्त्व मोहनीय, ए सात प्रकृति जेनी क्षय थई, अथवा उपशमी अथवा सातेमां कंश खपी कंश उपशमी, एवी जेना हैयामां सुहामणी समकितनी कला जागी तेज जीव मोदनो साधनारो कहेवाय. तेना सर्व अंगमां एटले बाह्य अन्यंतर अंगमां गुणस्थानक आरोहणी के० चढवानी शक्ति प्रगटी॥१॥ जेने जवस्थितिना परिपा कथी मुक्ति समीप थई भने संसारनी स्थिति घटी गई, ते पुरुषनी मनसा शीप स मान थई, त्यां सदगुरु ते मेघ समान थयो, ते सद्गुरुनां वचन तेनी मनसारूप सी पमा अमौलिक मोती जेवां थयां थकां रुचे ॥२॥ हवे सद्गुरुने मेघनी उपमा कहीने स्तवे बे:-श्रथ गुरु प्रशंसाः॥ दोहराः ॥-ज्यों बरषे बरषा समे, मेघ अखंडित धार; त्यों सदगुरु बानी खिरे, जगत जीव हितकार ॥२३॥ अर्थः-जेम वरसाद कालमा मेघ अखंडित धाराये वरसे, तेमज सद्गुरु होय ते जगत्वासी जीवने हित कारक अमृत वाणी खेरे ३ ॥ २३ ॥ हवे सद्गुरुना उपदेश श्रादेपणी धर्म कथा कहे :-अथ उपदेश कथनः ॥ सवैया तेश्साः॥-चेतनजी तुमजागि विलोकडं लाग रहे कहों माया कि तां श्राय कहींसुं कही तुम जामगे माया रहेगि जहांकि तहाई, माया तुह्मारि न जाति न पाति न वंसक वेली न अंसकि कोई दासि किए बिनु लातनि मारत, एसि अनीति न कीजे गुसांई ॥२४॥ दोहराः ॥-माया गया एक हे, घटे बढ़े लि नमाहि; इन्द्रकी संगति जे लगे, तिनहिं कहं सुख नांहि ॥ २५॥ सवैया तेईसाः॥लोगनिसों को नांतों न तेरौं न तोसाँ कबू श्ह लोगों नांतो; ए तो रहेरमि खारथकके रस, तू परमारथके रस मातो; ए तनसों तनमे तनसे जम, चेतन तुं त नसों नित हातो; होहि सुखी अपनो बल तोरिके राग विराग विरोधको तातो. ॥ २६ ॥ सोरगः ॥-जे मुरबुद्धीजीव, ते उतंग पदवी चहे; जे समरसी सदीव, ति न्हकों कबू न चाहिए ॥२७॥ सवैया श्कतीसाः॥-हांसीमें विषाद बसे विद्यामे विवाद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002165
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages228
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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