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________________ श्री समयसारनाटक. ४३ सर्व रचना ने. हवे तेने स्याछाद ज्ञानी कहे डे के, अहो! नाई. जीव जे जे ते जगत्थी जिन्न ने पण तेना झानमां जगतनोविकास ने तेथी ईश्वरपणानो गर्व चढ्योडे पण जे वस्तु डे तेतो पोताना स्वरूपमांज रहे डे अने परस्वरूपथी सदा जुदी रहे बे तेथी . जगत् श्रने श्रात्माने निश्चय नयना प्रमाणश्री स्याहादमां सर्वथा विरोध पामिए.॥५॥ . हवे त्रीजो एकांत नय ते झेयथी ज्ञाननो अनेक प्रपंच कहि देखामे: अथ तृतीय शेयसो अनेक ज्ञान कथनः॥ सवैया इकतीसाः॥-कोउ पशु ज्ञानकी अनंत विचित्राई देखे, शेयको प्रकार नाना रूप विसतर्यो है; ताहीको विचारी कहे ज्ञानकी अनेक सत्ता, गहिके एकंत पद लोकनिसों लयों है; ताको ब्रम नंजवेकों ज्ञानवंत कहे ज्ञान, अगम अगाध निराबाध रस नों है; झायक सुनाव परजाईसों अनेक नयो, जद्यपि तथापि एकतासों नहिं टर्यो है; ॥ ५.०३ ॥ अर्थः-कोई पशु के मूर्ख ज्ञाननी अनंत विचित्रता देखेडे. तेनो हेतु कहे . जगत्मां ज्ञेय वस्तु अनंत बे, तेना थाकार अनंत बे. ते झानमा परिणमे डे तेथी झानपण नानाप्रकारथी विस्तारे , श्रने तेना नाना रूप विस्तारने विचारीने ज्ञा ननी अनंत सत्ता माने जे. एवो एकांत पद लईने प्रतिवादी लोकथी लो . हवे स्याहादी ज्ञानवंत ते एकान्तपदीना भ्रम नांजवाने एम कहेले के, अहो ! नाई! तुं ज्ञानने झेयनो आकार परिणम्यो जाणीने केम जूले बे? ज्ञान डे ते अगम्य वस्तु बे; निराबाध रसथी नर्यु जे. ज्ञाननो ज्ञायक स्वनाव बे, तेथी यद्यपि पर्याय शक्ति झान अनेकरूप थयुं . तथापि ायक स्वजावथी छाननी एकताज . पण ते एक ताथी झान टलतुं नथी. ॥ ५०३॥ हवे चोथा नयमां शानने विषे झेयनी गयानो प्रपंच देखाडे : अथ चतुर्थ झेय गया यह कथन:॥ सवैया इकतीसाः ॥-कोन कुधी कहे ज्ञानमांहि शेयको श्राकार, प्रतिजासि रह्यो हे कलंक ताहि धोइए; जब ध्यान जलसों पखारिके धवल कीजे, सब निरा कार शुरू ज्ञानमई होइए; तासों स्याहादी कहे ज्ञानको सुनाउ यहे, झेयको श्रा कार वस्तु नांहि कहा खोइए; जैसे नाना रूप प्रतिबिंबकी फलक दीसे, जदपि त थापि श्रारसी विमल जोइए. ॥ ५४॥ अर्थः-कोई कुधी के कुबुझि वैशेषिक मतवालो एम कहे जे के, जो जगत्वासी जीवना ज्ञानमांज झेयनो श्राकार प्रतिनासे डे, ते आकार तो निराकार झानतुं क लंक उपजे. तेने धोई नाखवू जोइए, तेथी निराकारनुं ध्यान लगाडq तेतो जल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.002165
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages228
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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