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प्रकरणरत्नाकर जाग पहेलो. हवे ज्ञान- कारण शेय. एजे प्रथम नय कह्यो तेनो प्रपंच करी देखाडे:
श्रथ ज्ञानको कारन झेय प्रथम नय यह कथन:॥ सवैया इकतीसाः॥-कोन मूढ कहै जैसे प्रथम समारिनीति, पीले ताके उ पर सुचित्र श्राबो लेखिये; तैसे मूल कारन प्रगट घट पट जैसो, तैसो तहां ज्ञान रूप कारज विशेषिये; ज्ञानी कहे जैसी वस्तु तैसोई सुनाव ताको, ताको ज्ञान ज्ञेय जिन्न निन्न पद पेषिथे; कारन कारज दोउ एकहीमे निहचे पे, तेरो मत साचो विवहार दृष्टि देखीये ॥ ५०१॥
अर्थः-कोई मूढ मीमांसक ते शिष्य लोकने एम समजावे बे के, जेम प्रथम निं तने समारी होय तोपली तेना उपर चित्र सारु थाय, श्रने नरसी उपर नरसु चित्र थाय; तेम ज्ञाननी उत्पत्तिनुं कारण मन , पण जेवो घटपट प्रमुख पदार्थ होय ते बुज तिहांझानरूप कार्य विशेष थाय बे, जो घटपदार्थ जाणवा योग्य होय तो घट झान होय, अने पट पदार्थमा पट ज्ञान होय, तेथी छाननु कारण झेय बे, हवे तेने स्याछाद ज्ञानी एम कहेडे के, अहो नाई! जे जेवी वस्तु के तेनो स्वजाव पण तेवो ज जे जे ज्ञानपदार्थ डे तेनो स्वत्नाव जाणवानोज , अने जे शेयपदार्थ डे ते जा णवा योग्यज बे, श्रा अर्थ नेदश्री ज्ञान अने ज्ञेय ए बने जुदा पद जाणवा. अहीं जे ज्ञेय कारणपणे कडं तेज ज्ञान विकल्पे कह्यु, तेथी घटपटादि जगत २ ते जड पदार्थ धर रह्या, अने ज्ञान ने तेज सामान्य पणे जे तेथी निश्चय नयथी तो ज्ञानमां झेय पामिये, पण व्यवहार दृष्टि श्रापतां तो तारुं मत पण साचुं ने ॥ ५० ॥ हवे बीजा एकांत नय आत्मा त्रिलोकमय तेनो प्रपंच देखाडे बेः
अथ पुतिय नय श्रातमा त्रिलोक प्रमानयहु कथनंः॥ सवैया इकतीसा॥-कोउ मिथ्यामति लोकालोक व्यापि ज्ञान मानि, समुफे त्रि लोक पिंम श्रातम दरव है; याहिते सुबंद नयो डोले मुष हु न बोले, कहे या जग तमे हमारोई खरब है; तासों ज्ञाता कहे जीव जगतसों जिन्न पै, जगतको विकास तोहि याहीते गरव है; जो वस्तु सो वस्तु पररूपसों निराली सदा, निहचे प्रमान स्यादवादमे सरव है; ॥ ५० ॥
अर्थः- कोई नैयायिक, वैशेषिक मिथ्याति . ते ज्ञानने लोकालोक व्यापी मा नीने एवं समजे ले के, जीव ते विज्ञाननो पिंक बे. अने विज्ञान ने ते लोकालोक व्यापी . तेथी यात्मव्य त्रण लोक प्रमाण बे. तेथी पोताने सर्व व्यापी ईश्वर मा नीने स्वबंद थको डोले . अनिमानमां चड्यो श्रको बीजाने मूर्ख मानीने कोनी साथे मुखथी न बोले. जो बोले तो एम कहे के श्रा जगत्मां हमारीज खरव के
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