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________________ श्री समयसारनाटक. ४१ पे . नियत अंग के निश्चयनयथी अस्ति ने तेनो नेद अव्य पर्यायथी जाणवो. ए चार नेदमां अव्यथी वस्तु कहीए; वस्तुनी सत्तानी नूमिने क्षेत्र कहिये; वस्तुनी परि णाम चालथी काल कहीए; सहजनी मूलशक्तिने स्वनाव कहीए. ए रीते बुद्धिनी कल्पना करीने परव्य क्षेत्रादिकना जो विकल्प ग्रहण करिये.जेम के घट वस्तु ग्रह ण करवायी परव्य, परदेत्र, परकाल, परजावनी कल्पनाथी नास्ति . ए व्यवहार दृष्टिथी वस्तुना अंश नेद प्रमाण थायः ॥ ए ॥ अने ए नथी एवं कहेवामां स्वज व्यादिकनुं अस्तिपणुं लश्ने परजव्यादिकथी नास्तिपणुं लईए तथा ते बे नहि एम कहेवामा प्रथम परजव्यादिक, अस्तिपणुं ग्रहीए; अने नथीज एम केहेवामां फ री परऽव्यादिकनुं केवल नास्तिपणुंज ग्रहण करिये बिये; एथी सात नांगा उपजे श्रांही सर्वांग नयना धणी स्याहादी सर्व वस्तुमा सर्व नांगा माने बे. ॥ एए॥ हवे चौद नयना नेदथी एकेक नेदे एकांत पदीनी जेवी केहेणी ने तेवी कहे: अथ चतुर्दश नय नेद एकांत पद कथन नाम स्थापन:॥ सवैया इकतीसाः ॥-झानको कारन झेय श्रातमा त्रिलोक मेय, शेयसों श्र नेक ज्ञान मेल ज्ञेय ही है; जोलों ज्ञेय तोलों ज्ञान, सर्व दर्वमे विज्ञान, विनाज्ञेय बेत्र ज्ञान जीव वस्तु नांही है, देह नसे जीव नसे देह उपजत लसे, यातमा श्रचेतन है सत्ताअंसमांही है, जीव दिन जंगुर अज्ञायक सरूपी ज्ञान, ऐसी ऐसी एकंत श्र वस्था मूढ पाही है ॥ ५०० ॥ अर्थः-प्रथम चनद नयना नाम स्थापना कहेजेः-जे झेय वस्तुमा ज्ञान उपजेजे, तेथी ज्ञाननुं कारण झेय ए नाम बे, १.त्रण लोक प्रमाणे आत्मा डे, तेथी त्रिलो कमय एवं नाम , २. जेम अनेक ज्ञेय , तेम ज्ञान पण अनेक बे. ते अनेक ज्ञान ए नाम, ३. ज्ञानमां ज्ञेयनी बाया बे ते मेलq बे. तेथी मेलन झेय ए नाम बे, ४. ज्यां सुधी ज्ञेय जे त्यां सुधीझान बे. झेय उपरांत ज्ञान नश्री तेथी ज्यां लगी झेय ए नाम ५. सर्व प्रव्य मयी विज्ञान ने. तेनु तेज नाम. ६. झेय देत्रने प्रमाणेज ज्ञान बे, तेथी झेय क्षेत्रमान ए नाम . . जीव वस्तु जगत्मां नथी. तेथीनास्ति जीव ए नाम बे, ज. देहनो नाश थवाथी जीवनो पण नाश, तेथी जीव नाश ए नाम ए. देह उपजवायी जीव विराजे ने, तेथी देह त्यां जीवोत्पाद ए नामले १० श्रात्मा ते अचेतन पदार्थ डे तेथी अचेतन ज्ञाता ए नाम ले १९. सत्ताना अंश ते जीव कहिए बे, पण आत्मा अंश मात्र ए नाम ले १२. जीव बे, ते दाणनंगुरले तेथी एज नामले १३. ज्ञान ने ते झायक स्वरूपमा नथी तेथी अज्ञायक ज्ञान ए नाम ले १४. एवी एवी एकांत श्रवस्था मूढ लोको पामे वे ए नयना नेद जाणवा ॥ ५०० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002165
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages228
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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