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प्रकरणरत्नाकर नाग पहेलो. स्याहाद आगमनुं मूल जे. जे स्याछादना जाण प्रवीण जगत्वासी लोक हे ते सं. सार जल धिनो कांगे पामे. ॥ ए६ ॥ हवे नयजालथी शिष्यने संदेह नपज्यो त्यारे प्रश्न करेः-श्रथ शिष्यप्रश्न
गुरु उत्तर कथन:॥ सवैया इकतीसाः ॥- शिष्य कहे स्वामी जीव स्वाधीन के पराधीन, जीव एक है किधौ अनेक मानि लीजिये; जीव हे सदीव किधौ नाहि है जगतमांहि ? जीव अविनस्वर के नखर कहीजिये; सतगुरु कहे जीव है सदीव निजाधीन, एक अवि नखर दरव दृष्टि दीजिये, जीव पराधीन बिन नंगुर अनेकरूप, नांहि तहां जहां परजे प्रवान कीजीए. ॥ ए॥
अर्थः-प्रथम शिष्य पुळे, स्वामी जीव स्वाधीन बे के पराधीन ? जीव एक डे के गणतिमां अनेक डे ? ए केम मनमां जाणवू. श्रने जीव कहेवाय ने तो जगत्मा सदाबे के नश्री, ए अस्तिपणानो संदेहजे, अने जीव अस्ति के अविनाशी के विनाशी. हवे श्रावी रीतना प्रश्न उपर सजुरु कहेने, के हे! शिष्य! जीव वस्तु ज गत्मां बे, पण नास्ति न कहीए, थने ते जीव थापणे स्वाधीन डे. अने एक यद्यपि गणतीये अनेक बे, तो पण लक्षणथी एक बे. थविनाशी अव्य अष्टि दीजे तो एम ज, अने जो पर्याय नय प्रमाण करीये तो जीव पराधीन बे, कर्माधीन बे. अने अवचित मरण देखतां दणनंगुर बे. गत्यादिक देखतां अनेकरूप . वली अजीव प दार्थ स्थापनानी अपेक्षाये नथी. अने जहां पर्याय प्रमाण तिहां एजे. ॥ ७॥ हवे अन्य क्षेत्र काल नावे करीने सर्व वस्तुनुं अस्तिनास्तिपणुं कहेजेः
अथ दरव देत्र काल नाव अस्तिनास्ति कथनः॥सवैया श्कतीसाः ॥- सर्व क्षेत्र काल जाव चारो नेद वस्तुहीमे, अपने चतुष्क वस्तु थस्तिरूप मानिये; परकेचतुष्क वस्तु नासति नियत अंग, ताको नेद दर्व परजाय मध्य जानिये; दरवतो वस्तु खेत्र सत्ता नूमिकाल चाल, सुजाव सहज मूल सकति बखानिये, याही जांती पर विकलप बुद्धि कलपना, विवहार दृष्टि अंशन्नेद परवानि ये. ॥ एG ॥ दोहराः ॥- हे नाही नाही सु है, है है नाही नाही; यह सरवंगी नय धनी, सबमाने सब मांहि. ॥ एए॥
अर्थः-अव्य, देत्र, काल, नाव ए चारे नेद वस्तुमां विचारीए. श्रांही श्रापणे वस्तु बे, ते अस्तिरूप मानीए. एटले स्वभव्य, स्वदेत्र, स्वकाल, स्वनावथी विचारीए त्या रे तो सर्व वस्तु अस्तिरूपे , अने जो परवस्तुथी ए चारने विचारिये तो वस्तुनुं ना स्तिस्वरूप नीपजे बे. एटले परजव्य, परदेत्र, परकाल, परजावथी सर्व वस्तु नास्तिरू
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