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श्री समयसारनाटक. अनुजवरूपमांज , एटले अनुनवमांज स्वर्ग नरक बे, अने अनुजवनी केलि के रमत ते कामधेनुरूप , ते श्रापणीज्ञछिने वधारनारी ,श्रने ते श्रनुजवनी जे केलि बे ते अक्षय कधि करवाने चित्रावेली , अने अनुजवनो स्वाद ते पंचामृतना कौर के ग्रास जेवो बे. श्रनुजव करमने तोडे, ने परमात्मानी प्राप्ति जोडे बे; एटले अनु जवथी खोजतां परमात्मानी प्राप्ति थायजे; तेथी सर्व धर्म धारण करवामां अनुजव जेवो बीजो कोई धर्म नथी. एटले अनुजव ज्ञान जाणवाथीज मोद मार्ग नजीक ॥१॥
हवे अनुभव साधवाने ब व्यनुं वर्णन करेले. तेमां प्रथम जीव ऽव्य वर्णनः
॥ दोहराः॥- चेतनवंत अनंत गुन, पर्यय सकति अनंत; अलख अखंडित सर्वगत, जीव दरववीरतंत ॥२०॥
अर्थः-जाणवो मात्रने चेतन कहे तप शक्तिमान बे, जेना अनंत गुण बे. जेमां पर्याय के नामांतरपणुं पामवानी अनंत शक्ति बे, इंजिय अगोचर , तेथी अलद बे, देहना खंड थाय पण थात्मा अखंमित डे, सर्व लोकमां नस्यो ने तेथी सर्वगत बे, एवं जीव अव्यनुं स्वरूप . ते कह्यो. ॥२०॥
हवे पुजल जव्यलक्षण कहे. अथ पुजल जव्य यथाः॥दोहराः॥-फरस वन रस गंधमय, नरद पास संगण; अणुरू पीपुजल दरब, नन प्रदेश परमान ॥१॥
अर्थः-स्पर्श वर्ण रस गंध ए गुणमय सदा रहे, नरद जे सोगीरूप राग तेना पासामा सूक्ष्म, वृत्त, अस्त्र, चतुरस्र, थायत ए पांच संस्थान बे; तेथी एनुं नाम संस्थान बे. पोत पोतानी वर्गणा योग्यरूप ग्रहण करे, तेथीए पुजल अव्य अनुरूपी अथवा पर माणुरूपी जे. जेम आकाशप्रदेश अनंत , तेम ए पण अनंत प्रमाण ॥१॥
हवे धर्म अव्यनुं लक्षण कहे. धर्म अव्य यथा. ॥दोहराः॥- जैसै सलिल समूहमें, करै मीन गति कर्म; तैसे पुजल जीवको, चल न सहाई धर्मः ॥ २२॥
अर्थः-जेम पाणीना नरावमां माबढुं गमन क्रिया करे, तहां क्रियानो कर्ता मा ब्बु , अने सलिल समूह जे पाणीनो जराव ते क्रियानो साधक डे तेम पुजलप्रव्य नी तथा जीवजव्यनी चलन क्रियानो साधक धर्मास्तिकाय अव्य बे. ॥१२॥
हवे अधर्मास्तिकाय अव्यनुं लक्षण कहेले. अधर्म अव्य यथाः॥दोहराः॥-ज्यों पंथिक ग्रीषमसमै, बैठे बाया माहिं; त्यों अधर्मकी नूमिमें, जड चेतन ठहरांहि. ॥३॥ अर्थः-जेम कोई वटेमाणु बेसवानी क्रियानो कर्त्ताडे, ने क्रियानी साधक गया ,
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