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________________ ५६ प्रकरणरत्नाकर नाग पहेलो. देखाड्यु तेवो आ ग्रंथ पण विस्तारवंत बे, एवा श्रा नाटक ग्रंथने श्रवण करतामां है यानां कमाम ते फाटक के खुली जाय ॥ १५ ॥ ॥दोहाः॥-कहों शुद्ध निहचै कथा, कहों शुद्ध विवहार; मुक्ति पंथ कारन कहों, अनुन्नौको अधिकार ॥ १६॥ अर्थः-जे शुद्ध निश्चयरूप कथाले ते कहीश. अने शुद्ध व्यवहार जे ले ते पण कहीश अने मुक्ति पंथनुं कारण जे जे ते पण कहीश अने अनुजवनो जे अधिकार डे ते पण हुं कहीश ॥१६॥ अनुजव पदार्थनुं लक्षण. कहेजेः- अनुनव वर्णनं ॥ दोहराः ॥ वस्तुविचारत ध्यावतै, मन पावै विश्राम; रस वादन सुख ऊपजे, अ नुजौ याको नाम ॥ १७ ॥ अर्थः-अजाणीवस्तु जाणवाने मनमा विचार कख्याथी तथा तेनुं चिंतन कस्वाथी एम खोजतां खोजतां ज्यारे मनमां ठीक ठरे, त्यारे सत्य समज्याना रसनो खाद प्राप्त थाय ने तेथी सुख उपजे तेनुं नाम अनुजव जे ॥१७॥ ॥दोहराः॥ श्रनुजौ रतन चिंतामनि, अनुनौ है रसकूप; अनुनौ मारग मोखको, अनुन्नौ मोख सरूप॥ १७ ॥ अर्थ ॥ अनुनव जेजे तेज चिंतामणि रत्न , अने तेज अनुजव रसायननी कुपी बे; अनुजव तेज मोदनो मारग डे अने अनुजवज मोद सरूप ॥ १७ ॥ अनुभव महीमा. ॥सवैया श्कतीसाः॥-अनुनौके रसको रसायन कहत जग, अनुनौ श्रन्यास यहै तीरथकी गेर है; अनुलोकी जो रसा कहावै सोई पोरसा सु,अनुन्नौ अधोरसा सु उरधकी दौर है; अनुनौकी केली यहै कामधेनु चित्रावेली, अनुजौको स्वाद पंच अमृतको कौर है; अनुजौ करम तोरै, परमसों प्रीति जोरै, अनुनौ समान न धरम कोउ और है ॥ १ ॥ अर्थः-जगत्वासी लोक अनुजवना रसने रसायन केहेजे, केमके जेम रसायन लोढार्नु सुवर्ण करे, तेम अनुनव जे ते मिथ्यात्वने फेडीने सम्यक्त्व करे; जेम तीर्थनी ठगेर जवाथी अपावन होय ते पावन थायजे. तेम ग्रंथविषे अनुजवनो श्र ज्यास ते अजाणने जाण करे. अने अनुजवनी जे रसा के पृथवी तेहज सुवर्ण पोरसा डे, एटले श्रनुजवनी उत्पत्ति , ते सोवन पोरसानी परे वृद्धि पामेजे. श्रने अधोरसा के पाताल लोक, ते पण अनुजव रूपमां ने, थने ऊर्ध्व लोकनी दोर ते पण Jain Education Interational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002165
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages228
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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