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________________ श्री समयसारनाटक. ७३३ वली दर्शन ज्ञान चारित्रनी दशाने विकल्प रहित एकपणे श्रात्माने जुए, एज रीते स्थिररूप थश्ने मोक्ष मार्गने साधे ने तेनेज सुधी केएसुबुद्धिवंत श्रनुजववंत कहिये॥६॥ हवे निःसंदेह शुद्ध स्वरूप पाम, तेनो महिमा कहे बेः-श्रथ अनुनव महिमाकथनः ॥ सवैया इकतीसाः॥- जोर दृग् ज्ञान चरणातममें नवि गेर, नयो निरदोर पर वस्तुकों न परसे; सुद्धता विचारे ध्यावे शुक्षतामें केलि करे, सुकतामें थिर है अमृत धारा वरसै; त्यागी तन कष्ट व्है स्पष्ट श्रष्ट करमको, करे थान नष्ट नष्ट करे थोर करसे; सोई विकलप विजई अलप कालमांहि, त्यागि नो विधान निरवान पद दरसे ॥६५॥ अर्थः- जे कोई दर्शन झान चारित्ररूपी श्रात्माने विषे झानने ठेकाणे वेरावीने वाट बांधे, त्यां निरदोर के संशय रहित थईने परवस्तुनो स्पर्श न करे, त्यां निश्चय नय ग्रहण करीने शुहताज विचारे, शुहताज ध्यावे, अप्रमादि थईने शुद्धतामां केलि करे, शुक्ल ध्यानना प्रथम पायामां प्रवेशकरी शुद्धतामां थिर थईने महा श्रानं दरूप अमृतनी धारा वरषावे. याही अवयवरूप लक्षण बे. तेथी शरीरना कष्टने त्या गेले. लीनताथी शरीर कष्ट न जाणे त्यारे स्पष्ट थईने एटले वीर्य फोरवीने श्रावे क मनां स्थानने नष्ट करे एटले कर्मोने सत्ता थकी चलायमान करे अने नष्ट करे के निर्जरा करे ऐसे औरईकैसे के० ते जीव कर्मोने याकर्षिने निर्जरावे ते जीव विकल्प जालनो विजय करीने अल्प कालमांज जो विधान के जवश्रेणिने त्यागी मोद पद देखे एटले पामे ॥ ६५ ॥ हवे शिष्य पुढे ले के ए अनुनय पामवो महा विषम ते उपर गुरु शिक्षा देनेः अथ अनुभव शिदा कथनः॥ चौपाईः ॥-गुन परजैमे दृष्टि म दीजे; निरविकलप अनुलो रस पीजे; श्राप स माश् श्रापमे लीजे; तनपा मेटि अपनपो कीजे ॥ ६६ ॥ दोहराः ॥-तजि विनाव हु जे मगन, सुझातम पदमां हि; एक मोष मारग यहे, और दूसरो नांहि ॥ ६७ ॥ अर्थः-श्रात्माना गुण पर्याय अनेक डे, पण तेमां दृष्टि न देवी, मात्र निर्विकल्प अव्यनो अनुभव रस पीवो. श्रात्मा श्राधारमा आत्मानो समास करी लेवो एटले लय लगामवी, एटले आपणे शरीर धारी बीए, ते दशानु काय योग पणुं ते मटावी आत्म स्वरूप करीए ॥ ६६ ॥ श्रात्माना मूल खन्नाव विना बीजुं सर्व विनाव पणु बे, तेहने त्यजीने शुरू श्रात्माना चिदानंद स्वनावमांज मग्न थश्ये, एक अद्वितीय मोदनो मार्ग एज . तेथी बीजो को मोदनो मार्ग नथी ॥ ६ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002165
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages228
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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