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श्री समयसारनाटक.
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रवा ईश्वर अवतार लेने दुःख पामेबे एवं मिथ्यादृष्टिनी के देवतमांबे, पण जीव शुद्ध थईने फरी राग रसमां राचिने कोई कालमां प्रापणो स्वभाव त्याग करीने पर वस्तु ने हे नही. केमके अम्लान ज्ञान के० जे फरी करमाय नही एवं ज्ञान वि द्यमान कालविषे प्रगट युं तेतो आगामिक कालमा अनंत काल लगी रहेशे ॥ ५७ ॥ दवे फी वतार लेवाना कारणनो अजाव कहेबे :- अनादिकालथी चेतन मि थ्यात्व जावरूप विनावमां रमि रह्यो हतो ते समयप्रस्ताव पामीने, विजावधी उप रांगे यई पोतानो शुद्ध स्वभाव हतो ते पोतेज लइ लीधो, तेथी ज्ञान दर्शनादिक जाव लेवा योग्य हतो ते लीधो, अने राग द्वेषादिक जाव त्यागवाजोग हतो ते सर्व त्यागी दीघो; ते लेवानुं बीजुं ठेकाणुं रचुं नदी, छाने त्यागवानुं पण बीजुं ठेकाणं रचुं नही. हवे हां बाकी नवुं कार्य करवानुं शुं रचुंबे के जे कार्य करवाने फरी अवतार लेवोपमे ? जे उपाधिसंग हतो तेतो सर्व त्यजीने एटले अंग त्याग के० काय योग त्यागिने, वचन तरंग त्याग के० वचन योग त्यागीने तथा मनोयोग त्यागिने बुद्धि त्याग के विकल्प त्यागीने श्रात्माने शुद्ध करी लीधो ॥ ५८ ॥
दवे बाह्य द्वेष धरवो ते द्रव्यलिंग कहिए ते एकांतपणे मोदनुं कारण नथी ते कहे :- अथ एकांत द्रव्यलिंगी की निंदा:
॥ दोहराः ॥ - शुद्ध ज्ञानके देह नहि, मुद्रा द्वेष न कोश; ताते कारन मोषको, द वलिंग नहि दो || ५० ॥ द्रव्य लिंग न्यारो प्रगट, कला वचन विन्यान; अष्ट महारिधिष्ट सिधि, एक होहि न ज्ञान ॥ ६० ॥
अर्थः- यात्मा तो शुद्ध ज्ञानमय बे. अने शुद्ध ज्ञानने देह नथी, अने ज्यारे देह नयी त्यारे ज्ञान ने मुद्रा नेष पण कोइ नथी. तेथी मोदनुं कारण द्रव्य लिंग होय नही. एटले नेपलीधे मुक्ति नथी ॥ ५७ ॥ ज्ञानथी द्रव्यलिंग तो प्रगट पणे जुडुंज बे. क लाविज्ञान, वचन विज्ञान, ते ज्ञानथी न्यारां बे तथा आचार, श्रुत, शरीर, वचन, वाचना, बुद्धि, उपयोग, संग्रह संलीनता, ए अष्ट महा रिद्धि बे. श्रने अणिमा, म हिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, इशित्व, वशित्व, ए श्रष्टमदा सिद्धि बे. ते पण ज्ञान नथी ॥ ६० ॥
हवे एटलां महिमावंत स्थानक बे, तो पण ए ज्ञाननां स्थानक नथी ते कहे :
अथ ज्ञान अजाव स्थानक कथनः
॥ सवैया इकतीसाः ॥ - नेषमें न ज्ञान नहि ज्ञान गुरु वर्त्तनमें, मंत्र तंत्र तंत्रमें न ज्ञानकी कहानी है; ग्रंथ में न ज्ञान नहिं ज्ञान कवि चातुरी में वातनिमें, ज्ञान नहीं ज्ञान कहा वानी है; तातें नेष गुरुता कवित्त ग्रंथ मंत्र वात, इनतें घतीत ज्ञान चे
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