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________________ ७३० प्रकरण रत्नाकर जाग पहेलो. ले तो पूर्ण स्वजाव पामीने केवल ज्ञान पामे पढी केवल ज्ञान पामीने उत्कृष्ट अ तींद्रिय सुखने विषे निरंतर मग्न रहे. ॥ ५५ ॥ दवे शुद्ध आत्मा द्रव्य बे तेनुं वर्णन करेढेः - श्रथ शुद्ध आत्मदर्ववर्ननः॥ सवैया इकतीसाः॥ - निरनै निराकूल निगम वेद निरभेद, जाके परगासमें जग त माईयतु है; रूप रस गंध फास पुदगलको विलास, तासों उदवंश जाको जरा गा इतु है, विग्रहसों विरत परिग्रह से न्यारो सदा, जामें जोग निग्रहको चिन्ह पाइ यतु है; सो दे ज्ञान परवान चेतन निधान ताहि, अविनाशी ईश मानी सीस नाइ यतु है; ॥ ५६ ॥ जैसो नर नेदरूप निचें तीत हुंतो, तेसो निरनेद अब नेदको न गो; दोसे कर्म रहित सहित सुख समाधान, पायो निज थान फिरि बाहिर नवगो; कबहु कदाचि अपनो सुजाउ त्यागि करि, राग रस राचिके न परवस्तु गगो; अमलान ज्ञान विद्यमान परगट जयो, यादी जांति श्रागम अनंत काल र देगो ॥ ५१ ॥ जबहितें चेतन विजाउसों उलटि श्रापु सम पाइ अपनो सुनाउ ग दि लीनो है; तबहीते जोजो लेन जोग सो से सब लीनो, जो जो त्याग जोग सो सो सब बांड दीनो है; लेवेकौ न रही ठगेर त्यागिवेकों नांदी और बाकी कहा ज यो जु कारज नवीनो है; संग त्यागि अंग त्यागि वचन तरंग त्यागि, मन त्यागि बुद्धि त्यागि थापा सुद्ध कीनौ है ॥ ५८ ॥ H अर्थः- जे निर्जय के हेवाय बे, निराकुल केदेवाय बे, निगम के उत्कृष्ट अर्थ के हे वाय बे, वेद के ज्ञानरूप केदेवाय बे, जेनो नेद नथी एवो प्रकाशवंत पदार्थ बे; जे मां सर्व जगत् शमाय बे; छाने जे ए रूप रस गंध स्पर्श जे विनाशी पदार्थो बे, तेतो पुलनो विलास बे, तेना उदवंस के० तेथी रहित जे बे तेनो जसगाइए बे. वली जे विग्रह के शरीर तेथी विरत के० रहित छाने द्रव्यजावरूप परिग्रह तेथी जुदो बे, जेमां सदाय त्रणे योगथी रहित पणानुं चिन्ह के० लक्षण पामीए बे, एवो पदार्थ तो ज्यां ज्ञान नेत्यां ते पदार्थ बे. तेथी ज्ञान प्रमाण बे. अने चेतनानो निधान बे. तेने अविनाशी ईश्वर मानीने मस्तक नमावीए बे ॥ ५६ ॥ दवे बीजुं पण शुद्धात्म द्रव्य सिद्धनुं वर्णन करे :- तीत कालमां पण शुद्धात्म द्रव्य निश्चय नयथी श्रद रूप हतुं ने व्यहारनये नेदरूप तुं. दवे केवल रूप पामिने निर्जेद के० जेद र हित जाणीए. हवे एवी दशामां कोण मूर्ख नेद ठरावशे ? नैयायिक लोक जे पोता नी प्ररूपणामां समाधियोगश्रात्माने कर्म रहित मानीने फरी संसारमां अवतार मानीने तेने नमस्कार करेबे, पण जे कर्म रहित थयो, सुख समाधान सहित थयो, पोतानुं स्थानक पाम्यो, ते पाढो बाह्य संकटमां केम पमशे? जेम धरतीनो जार उता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002165
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages228
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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