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________________ - श्री समयसारनाटक. ए या करुंडं ते राग द्वेष विना वांगरहित करुंटुं. श्रने जे ए विषय रस डे ते, मोहती तो के मने तिक्त लागे एटले कमवो लागेले. पोतानी शुरू चेतनानो अनुभव क रीने में जगत्मां मोहरूप महासुनट जीत्यो. माझं एवं स्वरूप पामीने हुँ मोदने सन्मुख थयो, हवे मने एवी रीतथीज अनंत काल वीतो! एटले अनंत काल लगे ए वोज रहुं ए श्राशंसा डे ॥ ५० ॥ विचक्षण ज्ञानी पुरुष श्राशंसा करीने कहे के हुँ सदा ज्ञान रसमां राची रहुं अने हुं शुरू श्रात्मना अनुलवथी को पण कालमा स्ख खित न थालं! ॥ ५१ ॥ ए पूर्व कृत पुण्य पापरूप जे कर्म बे, ते विष वृक्ष जाणवा थने ते कर्मना उदयनो जे जोग ते विष वृदनां फल फुल . हुं श्रा उदय जोगनो जोक्ता नथी. राग द्वेषथी रहित वं. अनादिकालना साथे लागेला वि षय जोग तेसहज निर्मूल थाय ॥ ५५ ॥ हवे उदासीनताने वैराग्य कहिये तेनो महिमा कहेजेः-अथ वैराग्यमहिमाकथनः ॥दोहराः॥-जो पूरव कृत कर्म फल, रुचिसों मुंजे नांहि; मगन रहे आगे पहर, शुझातम पदमांहि ॥ ५३ ॥ सो बुध कर्मदसा रहित, पावे मोष तुरंत; मुंजे परम स माधि सुख, आगम काल अनंत ॥ ५ ॥ अर्थः- जे पूर्वकालमां कर्म कखं, तेनुं फल उदय थयु, ते फलथी रुचि लगामी जोगवे नही अने थारे प्रहर शुरू श्रात्मपदमा मग्न रहे ॥ ५३ ॥ तेज पंमित कर्म दशा रहित धईने तरत मोक्षपद पामे, ते पडी श्रागामिक कालमां अनंत काल लगी परम समाधिनुं सुख जोगवे ॥ ५४॥ हवे झानि पुरुषनो क्रमे क्रमे महिमा वधे ते कहेजेः- ज्ञानी पुरुष महिमा कथनः ॥बप्पय बंदः॥- जो पूरव कृतकर्म, विरष विष फल नहि मुंजे; जोग जुगतिकारज करंत ममता न प्रजुंजे; राग विरोध निरोध संग विकलप सबि बंडे, शुभातम अनुनौ श्रन्यासि सिव नाटक मंडे; जो ज्ञानवंत श्ह मग चलत, पूरत व्है केवल लहे सो परम अतींजिय सुखविषे, मगन रूप संतत रहे ॥ ५५ ॥ अर्थः- जो ज्ञाता थईने पूर्व कृतकर्म रूप वृदना विष फलने जोगवे नही एटले इष्ट फलथी रति न उपजे, अनिष्ट फलथी अरति न उपजे एवो झाता जे , ते मन वचन कायाना योगे करी युक्त बे, तेथी जोगनी गति के प्रवृत्तिये कार्य करेले, पण कार्यविषे ममता प्रजुंजे नही, एरीते राग द्वेषनो निरोध करीने योगना संगथी जे विकल्प उठेले, ते सर्व बांडे, शुरू श्रात्माना अनुजवनो श्रन्यास करीने शिवनाटक के जे थकी जीवन्मुक्ति होय एवं नाटक मांडे. जो ज्ञानवंत पुरुष एहिज मार्गे चा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002165
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages228
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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