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________________ २७ श्री समयसारनाटक. शाश्वत ले. कर्म चालनो तेने नय नथी, एटले कर्म जेना स्वनावनो नाश करी शके नही, मन वचन थने कायना योगनी जाल तेथी जे अजित , अने था जगत्नो वास , तेतो मोहतोविलास, पण मारो विलास नथी. जगत् कहिये जवज्रमण तेथी हुँ शून्य बुं, गति कर्म जगत् करे, तेतो मारा स्वरूपमा पाप पुण्य अंधकूप समान बे, एथी पाप कोणे कीg, हवे कोण करे , बागल कोण करशे; श्राजे क्रियानो विचार दिगमां श्रावे, तेतो स्वप्नानी दोरधाव समान मिथ्याव्यवहार ॥४१॥ . हवे मिथ्या परिणाममुं वर्णन करे:-अथ मिथ्यात्व परिणाम वर्णन: ॥ दोहराः ॥- में यों कीनौ यौँ करौं, अब यह मेरो काम, मन वच कायामें वसे, ए मिथ्यात परिनाम, ॥४२॥ मन वच काया करम फल, करम दशा जड अंग; दर वित पुजल पिंडमें, नावित नरम तरंग ॥ ४३॥ तांते जावित धरमसो, करम सुनाज थपूर; कोंन करावे को करे, कोसर लहे सब जूठ॥४४॥ श्रर्थः- मैं श्रावं कीg, श्राम करुंलु, हवे आ माझं काम , ते कहुबु, एरीते ज्ञान चेतना जाग्याविना मन वचन कायामां मिथ्या परिणाम वसे, ॥ ४२ ॥श्रा जे मन वचन कायाना जोग , ते कर्मनुं फल बे, अने कर्मनी दशा जडरूप अंग बे, ए जे मन वचन काया , ते पुजल अव्यनो पिंड बे, तेथी या मिथ्या तरंग नाव उपजे बे. ॥४३॥ तेमाटे आत्मानो नावित धर्म एटले शुक जाणपणुं तेथी मिथ्या तरंगरूप कर्म स्वन्नाव विपरीत ने तेने करावे कोण अने करे कोण ? अने सरल कोण बे एटले अनुमोदे कोण ए प्रपंच सर्व जुगेडे, ॥ ४ ॥ हवे था जोगथी क्रिया होय तेनी निंदा करे:-अथ क्रियाकी निंदा कथन: ॥दोहराः॥-करनी हित हरनी सदा; मुकति वितरनी नांहि गनी बंध परति विषे, सनी महा पुष मांहि, ॥४५॥ सवैया इकतीसाः॥-करनीकी धरनी में माहा मोह राजा बसे, करनी श्रज्ञाननाव राकसकी पुरीहै, करनी करम काया पुग्गलकी प्रती बाया, करनी प्रगट माया मिसरीकी बुरी है, करनीके जाल में उरकि रह्यो चि दानंद, करनीकी जट झान जान पुति फुरी है। श्राचारज कहै करनीसों विवहारी जीव करनी सदीव निहचै सरूप बुरी है ॥४६॥ अर्थः- करणी जे क्रिया बे ते सदा अहितनी करनारी , मुक्तिने देवा वाली नथी, था क्रियाने श्रागममां तो बंध पद्धतिमांज गणी बे, तेथी क्रिया महा सुख सहित डे. ॥४५॥ क्रियानी नूमिमा महा मोह राजा वसे, अने किया डे ते तो अज्ञान नाव राक्षसनी नगरी बे. एटले क्रियामां अज्ञान राक्षस रही शकेले. अने ए क्रिया ले ते तो कर्मनो पमनायो , अने काय योगनो पडायो जे. अने पुजलनो प Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002165
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages228
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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