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प्रकरणरत्नाकर नाग पहेलो. जाणे, श्रने पर पुजलना संयोगथी जे नाव उपजे, तेने तो पररूप माने, शुझात्मना अनुजवनो अभ्यास राखे; अव्यकर्म, नावकर्म, नोकर्म एवीत्रण जातिनां कर्मनी ममता गमावे. ॥ ३०॥ हवे ज्ञाता थईने जे पूर्वकाल विषे कर्म कीधांजे तेनी श्रालोयणाले, अने पोतानी
विगत कहेजेः-अथ ज्ञाता पूर्व कृतकर्म बालोचन कथन:॥दोहराः॥-ज्ञानवंत अपनी कथा, कहै श्रापसों श्राप; में मिथ्यात दसाविषे, कीने बह विधि पाप. ॥ ३५॥ सवैया इकतीसाः ॥-हिरदे हमारे महा मोहकी विक लताही, ताते हम करुना न कीनी जीव घातकी; श्राप पाप कीने श्रोरनको उपदेश दीने, हती अनुमोदना हमारे याही बातकी; मन वच कायमें मगन ठहै कमाए कर्म, धाए ज्रम जालमें कहाए हम पातकी; ज्ञानके उदे लए हमारी दशा एसी नई, जेसी जान जासत अवस्था होत प्रातकी. ॥ ४० ॥ । श्रर्थः- ज्ञान चेतना जागतां ज्ञानवंत पोतानी कथा पोतानी मेले करे के में पूर्व कालमां मिथ्यात्व दशामां बहु जातनां पाप कीधां बे. ॥३७॥ हमारा हैयामा पूर्व काल विषे महामोहनी विकलता थई, तेथी में जीव घातनी करुणा न कीधी, ने निर्दयदशा राखी, पोतानी कायाथी तो पोतेज पाप कीधां अने बीजाने वचने करी पापनो उपदेश दीधो; अथवा कोईने पाप करतो देखीने में तेनी अनुमोदना करी एवी रीते मन वचन कायाना अशुफ व्यवहारमा मग्न थईने कर्मनी कमाणी करी मिथ्या जालमां एवी रीते दोड्या, तेथी श्रमे पातकी केहेवाइए बैये; हवे शाननो उदयथतां हमारी दिशा एवी थई के जेम सूर्यना नासवाथी प्रनात कालनी अवस्था उद्योतवंत थाय, तेम हमारी पण एवी अवस्था थई ॥ ४ ॥ हवे ज्ञाता ज्ञानना प्रजावधी जेवी श्रापणी अवस्था जाणे तेवी कहेडे.
श्रथ ज्ञाता ज्ञान प्रनाव कथन:॥सवैया इकतीसाः॥-झान नान नासत प्रवान ज्ञानवान कहे, करुना निधान श्रमलान मेरो रूप है; कालसों अतीत कर्म चालसों अजीत जोग, जालसों अजीत जाकी महिमा अनुप है; मोहको विलास यह जगतको वास मेंतो, जगतसों शुन्य पाप पुन्य अंध कूप है; पाप किन कियो कौन करे करिद सु कोन, क्रियाको विचार सुपनेकी धोर धूप है ॥४१॥
अर्थः-झानरूप सूर्यनो प्रकाश होवाथी प्रमाण ज्ञानवान के ज्ञाता पुरुष एम कहे के, माझं स्वरूप करुणा निधान बे. तथा सर्वनुं पोताना जेवू स्वरूप जाणी ने सर्वनो हित वत्सल बे. अने अम्लान कदेता निर्मल बे, कालने वश नथी एटले
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