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प्रकरणरत्नाकर नाग पहेलो. लखे तजे उतपात; साधे पुन्य चिंतवे अन्नै पद, यह सुविवेक चक्रकी वात ॥ २७ ॥-- ॥दोहराः॥- सतरंज खेले राधिका, कुबजा खेले सारि: याके निसि दिन जीतवो, वाके निसि दिन हारि ॥शए ॥ दोहराः-- जाके उर कुबजा बसे, सोई अलख बजान; जा के हिरदे राधिका, सो बुध सम्यक वान ॥ ३० ॥
अर्थः-जेम कोश्माणस सेतरंजनो रमनार सेतरंजना खेलनी सर्व धात के० युक्ति अने दाव समजेने, पोताना पराया दल उदर नजर राखी चाल चाले, पोताना पारका वजीर हाथी प्रमुख मोहोरा गणतिमा राखी मनमां परने मांत करवानुं विचारे, तेम साधु लोक पंडित , ते मोद मार्गमा खेले; लदणथी वस्तुने जोय; तेमां उत्पातरूप कार्य होय ते गंडी दे, अने पोतानुं साधन करे, चित्तमां अन्नेद पद विचारे ए विवेक चक्रनी वात डे ॥२॥ सुबुकि राधिका ते सेतरंज खेली रही , थने कुमति कुब्जा पासा सरखो खेल खेले. तेमां था सुमति राधिका तेनु विवेक चक्रमा रातदिन जि तवं थायजे. अने कुमति कुब्जा ते कर्म चक्रमां रातदिन हारे ॥३॥ जेनां हैयामां कुमति कुब्जा वसे, तेतो अलख थात्माना अजाण जे; अने जेना हैयामां सुमति राधिका वसेजे, तेज सम कितवंत बुक कहेतां ज्ञाता कहिये॥३०॥ हवे ज्यां शुमशान डे त्यां शुक्रिया थाय ते कः-अथ छानक्रिया सहकार कथनः
॥सवैया इकतीसाः॥-जहां शुद्ध ज्ञानकी कला उद्योत दीसे तहां, सुझ परवान शुद्ध चारित्रको अंस है; ता कारन ज्ञानी सब जाने झेय वस्तु मर्म, वैराग विलास धर्म वाको सरवंस है; राग दोष मोहकी दसासों जिन्न रहे याते, सर्वथा त्रिकाल कर्मजालको विध्वंस है; निरुपाधि श्रातम समाधिमें विराजे ताते, कहिये प्रगट पूरन पर महंस है; ॥ ३१ ॥ दोहराः-झायक नाव जहां तहां, शुद्ध बरनकी चाल; ताते ज्ञान विराग मल, सिव साधे सम काल. ॥ ३ ॥
अर्थः-जे प्राणीविषे जे शुरू झाननी कलानो उद्योत देखायडे, ते प्राणी विषे तेज वखतमां श्रात्मानी शुद्धता प्रमाण करीने शुद्ध चारित्रनो पण अंस थाय ते कारणथी जे ज्ञाता होय तेतो ज्ञेय के हेय उपादेयरूप सर्व जाणवा योग्य वस्तुनो मर्म जाणे, त्यारे ते हेयने बांडे अने उपादेयरूप सर्व जाणवू तेने ग्रहे, एवो वैराग्यना विला सनो स्वन्नाव सर्व अंशे करी प्रगट थाय. अने वैराग्य श्राव्याथी राग केष मोहनी दशाथी प्राणी जिन्न रहे, तेथी पूर्वकृत कर्मनी निर्जरा थायडे, अने वर्तमानकालमां कर्म न बांधे, जे प्रकृति बुटी गई ते श्रागामिक कालमां बांधे नही, एम सर्वथा प्रकारे कर्मजालनो विध्वंस थाय. तेवारे राग द्वेषादिक उपाधि रहित आत्म समाधिमां बिराजे तेथी तेने पूरण परमहंस प्रगटपणे कहिये ॥३१॥ ज्यां शायक नाव
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