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प्रकरणरत्नाकर नाग पहेलो. रागद्वेषना हेतुनु शिष्य प्रश्न करणे. गुरु उत्तर श्रापेजेः-श्रथ प्रश्नोत्तर कथन:
॥ सवैया श्कतीसाः ॥- कोउ शिष्य कहे स्वामी राग दोष परिनाम ताको मूल प्रेरक कहहु तुम कोनहै; पुग्गल करमजोग किधो इंजिनिको जोग; किधो धन किधो परिजन किधों जोन है; गुरु कहे ग्रहों दर्व अपने अपनेरूप, सबनिको सदा असहाई परीनोन है; कोउ दर्व काहु को न प्रेरक कदाचिताते, राग दोष मोद मृषामदिरा अचोन है ॥ १० ॥
अर्थः-को शिष्य श्राचार्यने विनय पुर्वक पुरवा लाग्यो के हो स्वामी, श्रा माने राग द्वेष परिणाम उपजे बे. तेनो प्रेरक निश्चय पणे तमे कोने ठरावो ? ए टले श्रात्माने पौलिक कर्मनो योग , तेज श्हां हेतु , के पंचेंडियनो जोगदेतु के धन हेतु बे, के परिवार हेतु बे, अथवा मंदीर हेतु बे, ? इत्यादिकोमांची राग वेष परिणामनो हेतु कोण बे, ते कहो. गुरु कहे , हे! शिष्य, ए पुजल संबंध हेतु नथी, तेम व्य इडिय बे, तेतो पोतपोताने रूपे पोतपोतानी सत्तामा रहे बे, अने सर्व अव्योनुं परिणमन सदा असहाई डे, कोई कोनुं सहाय करतुं नथी. तेथी कोई काले कोई अव्य कोईनुं प्रेरक एटले हेतु नथी, माटे राग द्वेष परिणामनो हेतु तो मिथ्यात्व मोहकर्मरूप मदिरानी श्रचौन के उडतपणुं ॥१०॥
हवे कोई मूर्ख राग द्वेष परिणाममुं प्रेरक पुजलनुं बल ने एम कहे, तेने गुरु स मजावे :- अथ शिष्य प्रश्न गुरु उत्तर कथनं:
॥ दोहराः॥- कोऊ मूरख यों कहै, राग दोष परिनाम; पुगलकी जोरावरी, व रते श्रातम राम ॥ ११ ॥ ज्यों ज्यों पुग्गल बल करे, धरि धरि कर्मज नेष; राग दो षको परिनमन, त्यों त्यों हो विशेष ॥ १२ ॥ श्ह विधि जो विपरीत पख, गहे स दहे कोई सो नर राग विरोधसों, कबह निन्न न हो॥१३॥ सुगुरु कहै जगमें रहे, पुग्गल संग सदीव; सहज शुद्ध परिनमनको, औसर लहे न जीव ॥ १४ ॥ ताते चि दूतावनविषे, समरथ चेतन राज, राग विरोध मिथ्यातमें, सम्यकमेंसिव नाज॥१५॥
अर्थः-कोई मूर्ख लोक एम कहे के, आत्माराम विषे जे राग द्वेष परिणाम के, ते पुजलनी जोरावरीथी , एटले एज पुजलनुं जोर ॥ ११ ॥ जेम जेम कर्म नेख धारीने एटले कर्म वर्गनारूप धारीने पुजल अव्य श्रापणुं बल विस्तारे, तेम तेम रागद्वेषनुं परिणाम विशेषरूपे थाय बे, एम श्रात्मने विषे देखाय बे, ए सांख्यमतिर्नु केहेवू डे ॥ १५ ॥ ए रीते जे सांख्यमतिवाला आq विपरीत ग्रहण करे, अने सई देबे, ते पुरुष राग वेषथी एवी श्रझावमे पण कदी जुदो थाय नही ॥ १३ ॥ हवे स द्गुरु कहेडे, अरे! प्राणी !जगत्मा पुजलना संगमां जीव सदा रहे. अनादिथी ए पु
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