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________________ श्री समयसारनाटक. ७२१ लने जीवनुं संश्लेषपएं बे, तेथी सहज शुद्ध परिणामवालो जीव अवसर न पामे, एटले पोतानुं शुद्ध परिणाम ग्रहिशके नही ॥ १४ ॥ चेतनराय जे बे ते चिद्भावने विषे एटले ज्ञान जावविषे समर्थ बे, एटले जाणपणाना कार्यमां समर्थ बे, अने मिथ्यामति निमग्नताथी जाणपणामां राग द्वेष परिणाम देखाय बे, अने जीव सम्यग् मां रहे, त्यारे शिव जाव उपजेबे ॥ १५ ॥ हवे ज्ञान जावमां पुलनो जाव व्यापी शकतो नथी तेथी परजावनुं श्रव्यापक पण कहे :-थ व्यापकता कथनः ॥ दोहराः॥ -ज्यों दीपक रजनी समै, चिह्न दिसि करे उदोत; प्रगटे घट पट रूप में, घट पट रूप न होत ॥ १६ ॥ त्यों सु ज्ञान जाने सकल, ज्ञेय वस्तुको मर्म; याकृति परिनमन पे, तजै न श्रातम धर्म ॥ १७ ॥ ज्ञान धर्म अविचल सदा, गहे विकार न कोइ; राग विरोध विमोह मय कबहु मूलि न होइ ॥ १८ ॥ ऐसी महीमा ज्ञानकी, निचे है घटमांहि; मूरख मिथ्या दृष्टिसों, सहज विलोके नांहि ॥ १५ ॥ अर्थ: जेम दीवो रात्रे चारे दिशाने प्रकाशमान करेबे, अने तेथी घटपटा दिक पदार्थ प्रगटे, पण दीपकनो प्रकाश घटपटरूप यतो नथी. ॥ १६ ॥ तेम सुज्ञान जेबे, ते सर्व ज्ञेय वस्तुनो मर्म जाणेबे तेना ज्ञानमां ज्ञेय पदार्थनो आकार पण परिणमेवे तो पण ज्ञान जे बे ते श्रात्म धर्म शुद्ध पणु बांडतुं नयी ॥ १७ ॥ ज्ञान धर्मथी जाणपणुं ते सदा अविचल बे ए जाणपणामां कोई विकार प्रवेश करे नही. राग द्वेषमोहमां जीव वदेबे खरो, तोपण जाणपणाने कही मूल तो नयी ॥ १८ ॥ एवो ज्ञाननो महिमा निवें स्वरूपे घटमां बे. पण मूरख मिथ्या दृष्टि सहज स्वरूपने विलोकतो नयी ॥ १८‍ ॥ वे नादिकाली जीवनो मूढ स्वभाव बे ते कहेबे :- अथ मूढ स्वभाव कथन:॥ दोदराः॥ परसुजाव में मगन व्है ठाने राग विरोध; धेरै परिग्रह धारना, करे म सोध ॥ २० ॥ न अर्थः- शुद्ध चेतन स्वजावथी बीजा स्वभाव जे बे ते पर स्वभाव बे, तेमां मन थईने राग द्वेषमां तेरी रह्यो, अने एज राग द्वेषथी परिग्रहनी धारणा धरेबे पण श्रात्मद्रव्यनो सोध करे नहीं ॥ २० ॥ वे मूढने कुबुद्धि ने पंडितने सुबुद्धि होय ते कड़े :- ाथ कुबुद्धि तथा सुबुद्धि विवरन:॥चौपाई॥ मूरखके घट पुरमति जासी; पंक्ति दिए सुमति परगासी; पुरमति कुबजा करम कमावे; सुमति राधिका राम रमावे ॥ २१ ॥ दोहा ॥ - कुब्जा कारी कू बरी, करे जगतमें खेद; लख राधे राधिका, जाने निज पर नेद ॥ २२ ॥ ९१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002165
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages228
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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