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श्री समयसारनाटक.
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बुद्धी मिथ्यात्व मोहनो विकल्प थयो, तेथी हि तहिं विकल थईने डोले बे, अ ने धर्म वस्तुनो स्वजाव जाणतो नथी. तेथी ममां वह्यो फिरे बे ॥ ॥ वे सर्व पदार्थ पोताना स्वभावमां व्यापीरह्याबे ते कहेतेः प्रथव्यापकताकथनः - ॥ चोपाईः ॥ - सकल वस्तु जगमें सहाई, वस्तु वस्तुसों मिले न काई; जीव वस्तु जाने जग जेती, सोऊ जिन्न रहे सबसेती ॥ ४०० ॥
अर्थः- जगत्ने विषे सर्व नाव असहायपणे वर्त्ते वे कोई कोईनो सहाय कारी नथी, एज अर्थ प्रगट पणे कहे बे, के एक वस्तु बीजी विलक्षण वस्तु साथे मले नही. जगत्मां जेटली वस्तु बे, तेटलीने जीव जाणे बे. एटले सर्व ज्ञेय वस्तु जी. वना ज्ञानमां परिणमे बे, तोपण जीव सर्व वस्तुथी जुदोज रहे बे, एम पोतपोतानां जुदां लक्षण बे तेथी जुदां रहेबे ॥ ४०० ॥
हवे व्यवहारनी केहेवत देखाडेबे :
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:- अथ व्यवहार कथनंः
॥ दोदराः ॥ - करम करै फल जोगवै, जीव अज्ञानी कोई; यह कथनी व्यवहार की वस्तु स्वरूप न होइ ॥ ४०१ ॥
अर्थः- कोई अज्ञानी जीव बे, ते कर्मने करे अने तेनुं फल पण जोगवेढे, ए के देव त व्यवहारमां बे. पण जेवुं वस्तुनुं स्वरूप बे, तेवी केदेवत नथी ॥ ४०१ ॥ हवे व्यवहारने प्रमाण करे एवी विपरीत बुद्धिनुं वर्णन करे :विपरीत बुद्धि वर्ननं:
॥ कवित्त बंदः - ॥ श्राकार ज्ञानकी परिनति, पैं वह ज्ञान ज्ञेय नहि होइ; ज्ञेय रूप खट दरव जिन्न पद, ज्ञानरूप श्रातम पदसो; जाने नेद जान सुविचठन गुन ल बन सम्यग् दृग जोइ; मूरख कहे ज्ञान महि प्रकृति, प्रगट कलंक लखे नहिकोइ॥२॥
अर्थः- जेवो ज्ञेय वस्तुनो श्राकार बे, तेवी ज्ञाननी परिणती बे. एटले ज्ञान घट पटादिक ज्ञेया श्राकार परिणाम बे, पण ज्ञान वे ते ज्ञेय रूप न थाय. जगत्मां जे ज्ञेय वस्तु बेते व द्रव्य वे तेतो जिन्न पद के० जूदा जूदा खनावथी केहेवा योग्य बे, अने जे श्रात्मापं कहिये तेतो ज्ञानरूप के एवो जावनो जेद बे, ते गुण लक्षण लखीने जे जलो विचक्षण अध्यात्मनो वेत्ता सम्यग् दृष्टी होय तेज जाणे. पण वैशे षिक मति जेवो मूर्ख होय ते ज्ञानमां श्राकार विकल्प जोईने कड़े, अहो ! श्रा ज्ञानमां याकार जासे वे तो प्रगट कलंक बे. तेने कोई केम लखे नही ? ॥ २ ॥
दवे मिथ्यामति जीव पोतानी मतिने दृढ करेढेः - अथ मिथ्यामति कथनः॥ चोपाईः ॥ - निराकार जो ब्रह्म कहावे; सो साकार नाम क्यों पावे; ज्ञेयाका ज्ञान जबताई पूरन ब्रह्म नहि तबतांई ॥ ३ ॥ ज्ञेयाकार ब्रह्म मल माने; नास करनको उ
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