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प्रकरणरत्नाकर नाग पहेलो. सब नै प्रवान है; यद्यपि तथापि वीकलप विधि त्याग जोग, निरविकलप अनुनौ अमृत पान है. ॥ ए॥
अर्थः- जेम कोई चतुर पुरुषे मोतीनी माला संमारीने बनावी ने तेमां जात जातनुं विज्ञान , पण ते मालानो पहेरनारो तेनी क्रियानो विकल्प जोतो नथी, पण मोतीनी शोनाथी मगन ने सुखवान थई रहे . जेम मोतीनी मालामां श्र नेक विज्ञान , तेम अही पण अनेक विकल्प बे, आत्मा कर्त्ता नथी, नोक्ता न थी, अथवा कर्ता ने, नोक्ता बे, अथवा राग हेषादिक करनारा बीजा डे, अने नो गवनारा बीजा ने; ए सर्व नय प्रमाण २. यद्यपि ए सर्व नय प्रमाण दे, तथापि ए सर्व विकल्प विधि त्यागवा योग्य जे. केमके अनुनव जे जे तेतो निर्विकल्प ले अने अमृतपान समान बे, उपादेय . ॥ ए ॥ हवे स्याहादी आत्माने कर्त्ता जे नयथी माने ते कहेजेः-श्रथ कर्ताकथन:
॥ दोहराः ॥- दरब करम करता थलख, यहु विवहार कहाउ; निहचे जोजे सो दरब, तेसो ताको नाज. ॥ एज ॥
अर्थः-पुजल व्यरूप कर्मनो कर्त्ता अलख पुरुष थात्मा बे, ए व्यवहारमा केहे वाई शके बे, निश्चय नयमां तो ए वात डे के जे जे अव्य होय तेवं तेनुं नाव स्वरूप होय, एथी पुल अव्यनी क्रिया पुनलवडेज बने. ॥ एG ॥
हवे जेतुं विपरीतपणुं बुद्धिमां नासेजे, तेवू कहे:-अथ विपरीत बुद्धिकथन:
॥सवैया इकतीसाः॥- ज्ञानको सहज ज्ञेयाकाररूप परिनमे, यद्यपि तथापि झान झान रूप कह्यो है; शेयझेय रूप यों अनादिहीकी मरजाद, काहु वस्तु का हको सुनाउ नहि गह्यो है; एते परि कोउ मिथ्या मति कहे ज्ञेयाकार प्रति नास निसों ज्ञान अशुद्ध व्है रह्यो है; याहि उरबुझिसों विकल जयो मोलत है, समुझे न धरम यों नर्ममा हि वह्यो है ॥ एए॥
अर्थः-झाननो ए सहज स्वन्नाव डे के, घट पट प्रमुख ज्ञेय के० जाणवाजोग जे पदार्थ बे, तेनो जे श्राकार , तेजरूपे श्रात्मानुं ज्ञान परिणमे, यद्यपि ए वात प्रमाण के तो पण ज्ञान जे जे, ते ज्ञानरूपज कदेवाय पण शेयरूप न कहेवाय अने जे ज्ञेय पदार्थ बे ते ज्ञानमा परिणम्यो बे तोपण शेयरूपज केहेवाय, पण ज्ञानरूप न केहेवाय एवी अनादि कालनी मर्यादा , कोई वस्तु बीजी वस्तुनो स्वनाव ग्रहण करे नही, तेम जुदो जुदो स्वजावपण धारण करे नही, एवी मर्यादाबंध वात, तेम उतां कोई वैशेषिक प्रमुख मिथ्यामति कहे, के ज्ञेय पदार्थना श्राकार प्रति जासे , तेथी ज्ञान पदार्थ अशुभ थई रह्यो . ज्यारे ए श्रशुद्धपणुं मटी जशे तारे मुक्तिथशे, एज पुष्ट
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