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श्रीसमयसारनाटक.
१५ यहां कालने कर्त्ता कह्यो ते पण साचो बे, एरीते श्रात्मऽव्यमा अनेक अंग पामीये पण एमांथी एकज अंग माने अथवा एक अंग न माने तेनुं नाम कुमति बे, जे ए कांत पद डोमीने एक वस्तुमा अनेक अंग खोजे तेनुं नाम सुबुद्धि कहीए जेम के खोजी जीवे ने वादी मरे ए केहेवत , ते साची ॥ ए४ ॥
हवे स्याहाद, रूप कहेजेः-अथ स्याद्वाद स्वरूप कथनः॥ सवैया इकतीसाः ॥- एकमें अनेक है अनेकही में एक है सु, एक न अनेक क बु कह्यो न परतु है; करता करता है जोगता अनोगता है उपजे न उपजिति मूए न मरतु है; बोलत विचारत न बोले न विचारे कलु, नेषको न नाजन पै नेखसो धरतु है; ऐसो प्रजु चेतन अचेतनकी संगतीसो उलट पलट नट बाजीसी करतु है। ए५॥
अर्थः- एक अव्यमां अनेक पर्याय बे, श्रने अनेक पर्यायमां एक ऽव्य बे, ए थी हर कोई वस्तु एक बे, अथवा अनेकज बे, एम कांई केहेवातुं नथी. व्यवहार मां कर्ता , निश्चयमां अकर्ता डे, व्हवहारथी नोक्ता बे, निश्चयथी थनोक्ता , व्यवहारथी उपजे , निश्चयथी उत्पत्ति नथी, व्यवहारथी मुलं, ने निश्चयथी न श्री मन, व्यवहारथी बोले, विचारे, ने निश्चयनयथी कां बोले पण नही, ने विचारे पण नही, अविकल्पी, निश्चयथी नेषनुं नाजन के स्थानक नश्री, व्य वहारथी लेखनो धरनार बे. एवो चेतनवंत जे ईश्वर बे, ते पौलिक अचेतननि संगतीथी उलट पालट थई रह्यो, जाणे नटनी बाजीनो खेल करतो होय नी तेम खेल करे. ॥ ए५॥
अथ अनुजव व्यवस्था कथन:॥ दोहरा ॥- नट बाजी विकलप दसा, नाही अनुनौ जोग; केवल अनुनौ क . रनको, निरविकलप उपयोग. ॥ ए६ ॥
अर्थः- अनुजवमां श्रात्मप्रव्यनी जे अवस्था पामिये ते कहे. पूर्वे कही जे नट सरखी जीवनी उलट पालट बाजी डे ते तो विकल्प दशा . ए दशा अनुनवमा यो ग्य नथी, निःकेवल अनुजव करवाने निर्विकल्प उपयोग थापवो तेज सत्य बे.॥६॥ हवे अनुनवमां निर्विकल्प उपयोग आपवो तेनुं दृष्टांत कहेजेः
अथ अनुनौ दृष्टांत कथनं:॥ सवैया इकतीसाः ॥-जेसे काहु चतुर संवारी हे मुगतमाल, मालाकी क्रियामें नाना नातिको विज्ञान है; क्रियाको विकलप न देखे पहिरन वालो, मोतीनकी शो जमें मगन सुखवान है; तेसे न करे न जुजे अथवा करे सु जुजे, जेर करे उर जुजे
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