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________________ ७१४ प्रकरणरत्नाकर जाग पहेलो. बुद्ध कहेबे, घने जैनी एने जिन कहेबे, न्यायवादी नैयायकार्दिक एने कर्त्ता कदेबे, एरीते बऐ दर्शनमां शुद्ध जीवने कलेवामां एकएकथी वचननो विरोध बे. ए बए द र्शनमां जे वस्तुनुं स्वरूप लखे तेज प्रवीण कदेवाय, अने वचनना जेद प्रमाणे सम निरूढ नयनिमित्ते वस्तुमां जेद प्रवीण माने तेज शुद्ध वात बे ॥ २ ॥ हवे ए दर्शननामत स्थापन करे बे:- अथ मतस्थापना कथनंः ॥ सवैया इकतीसाः ॥ - वेदपाठी ब्रह्म मानै निहचे स्वरूप गहै, मीमांसक कर्म मा ने दैमें रहतु है; बौधमति बुद्ध मानै सूबम सुजान साथै, शिवमती शिवरूप कालकी हरतु है; न्याय ग्रंथके पढैया थापे करतार रूप, उद्दिम उदीरी जर आनंद लहतु है; पांचो दरसनी तेतो पोषे एकएक अंग, जैनी जिनपंथी सरबंगी नै गढ़तु है ॥ ३ ॥ अर्थः- वेद पाठी के० वेदांती जीव वस्तुने ब्रह्म मानीने निश्चय स्वरूपने ग्रहे. ए. टले एक अद्वैत मत धारेबे. मिमांसक के० यज्ञना करनार जीवने कर्मरूप मानेवे, तेथी उदयरूप थया जे संस्कार तेनुं ग्रहण करेबे. बौधमती जीवने बुद्धमानीने कपनंगुर पाथी सूक्ष्म वजाव साधेबे, तेथी वस्तुना स्वनावनेज कर्त्ता मानेवे. शिवमती जे वै शेषिक ते जीवने कालरूप माने, छाने शिवने कर्त्ता मानेते. न्याय ग्रंथना जणनारा प्रमाणादिक सोल पदार्थने मानेबे, शुद्ध जीवनेज कर्त्ता मानीने उद्यमनी उदीरणामां चित्तने आनंद करी मन रहेबे, एम ए पांचे दर्शन वस्तु स्वजावादिक पांच नयना एक एक अंग पोषेठे, एटले एकांत पक्ष महे. अने जे जैन मार्ग के देवाय बे, तेतो सर्वांगी सर्व नय ग्रहण करेबे ॥ ७३ ॥ दवे जे मत स्थापनामा जुदी जुदी बुद्धि कही ते सर्व एक बे, एवं जणावेढेःअथ मत स्थापना एकत्वी कथनं: ॥ सवैया इकतीसाः ॥ - निचै अनेद अंग उदै गुनकी तरंग, उद्यमकी रीति लिये उद्धता सकति है; परजायरूपको प्रवान सूबम सुनाउ, कालकीसी ढाल परि नाम चक्र गति है; याही जांति तम दरबके अनेक अंग, एक माने एककों न माने सो कुमति है; टेक डारि एकमे अनेक खोजे सो सुबुद्धि, खोजी जीवे वादी मरे साची कहवति है ॥ ए४ ॥ अर्थः- सर्व जीवमां लक्षण नेद नथी एवं निश्चय अंग ते साचो तरतम योगे गु ना तरंग उठी रह्या बे तेथी उदय अंग साचो बे, अने जीवनी उद्धत शक्ति बे. त्यां ते प्रवर्त्ते बे, तेथी उद्यम अंगवडे कर्त्तापणुं साधुं बे, अने पर्याय कण कणमो जुदा जुदा बे, तेनारूपनुं प्रमाण सूक्ष्म बे. तेथी बौध सूक्ष्म वजावने साधेबे, ते पण सांच परिणामनी गति बे, ते फरता चक्रनी शक्ति बे, ते काल द्रव्यनी ढाल बे तेथी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002165
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages228
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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