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श्री समयसारनाटक. हवे एकांत पदीना मतनी स्थापनाउपर अनेकांत स्याहादी मतनी प्रशंसा करे :
अथ अनेकांत श्लाघा कथनः॥ कवित्त बंदः।- केई कहै जीव बिन जंगुर, केई कहै करम करतार; केई कर्म रहित नित जंपहि, नय अनंत नाना परकार; जे एकंत गहै ते मूरख, पंडित अने कांत पखधार; जैसे जिन्न जिन्न मुगतागन, गुनसों गहत कहावे हार. ॥ ए॥
॥ दोहराः॥-जथा सूतसंग्रह विना, मुक्तमाल नहि होश तथा स्याहादी विना, मोख न सधे कोई. ॥ ए॥
अर्थः- कोई बौध मती जेवा तो जीवने दणभंगुर कहे जे; कोई मिमांसक सर खा कर्मने कर्त्ता मानेके कोई सांख्यमती सरखा तो सदा जीवने कर्मरहित कहे . एरीते अनंत नय नाना प्रकार कहे , एमांथी जे एकांत पदज ग्रही रहे ते तो मूर्ख ने अने पंमित जन जे जे, ते अनेकांत पद ग्रहे, जेम एक मालामां मोतीनो समुदाय थापणी थापणी सत्तामा सज जुदा जुदा डे पण ते सुतरमा परोव्याथी स र्वनुं एक हार नाम पडे डे, ॥ नए ॥ तेवो अनेकांत मत बे, केम के, सूतरना संगवि ना मोतीनी माला बने नही, तेम स्याहादमत धारण कीधा शिवाय मोदनो साधन हार थाय नही. ॥ ए॥
हवे मत नेदतुं कारण पांच नय ने तेनुं वर्णन करेजेः- श्रथ पंच नय वर्णनं:
॥ दोहराः॥- पद सुनाउ पूरवउदे, निहचे उदिम काल; पदपात मिथ्यात पथ, सरबंगी सिव चाल. ॥ ए१ ॥
अर्थः- कोई पद वस्तु स्वनाव माने, कोई पूर्व कर्मनो उदय माने, कोई निश्चय माने, कोई उद्यम माने, श्रने कोई काल माने. एमां पदपात करी जे एकनेज माने ते मिथ्यात्व मार्ग कहेवाय. ॥ ए१॥
हवे जुदा जुदा मतनी व्यवस्था कहे :- अथ मतव्यवस्था कथन:॥ सवैया श्कतीसाः॥- एक जीव वस्तुके अनेक रूप गुन नाम, निरजोग शुद्ध पर जोगसों अशुद्ध है; वेद पाठी ब्रह्म कहै मीमांसक कर्म कहै सिवमति शिव कहै बौध कहे बुद्ध है; जैनी कहे जिन, न्याय वादी करतार कहै, ब हों दरसनमें वचनको धि रुक है; वस्तुको सरूप पहिचाने सो परवीन, वचनके नेद नेद माने सोई शुभ है। __ अर्थः-जीव वस्तु एक श्रने तेना गुण अनेक , रूप अनेक डे, अने नाम अनेक बे, निरजोग बे एटले परसंयोग विना पोताना खजावमा रह्यो शुकडे, अने परना संयोगथी अशुद्ध जे. वली वेद पाठी प्रनावे करी एने ब्रह्म कहे. मिमांसक जै मिनीय एने कर्म कहे शिवमती एटले वैशेषिक एने शिव कहे, बौधमती एने
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