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________________ १२ प्रकरणरत्नाकर नाग पहेलो. प्रीति मायाहिमे हारि जीति, लिये हरीति जैसे चरिलकी सकरी; चूंगुलके जोर जैसे गोह गहि रहै नूमि,त्योंहि पाई गाडेपेंन बोडेटेक पकरी; मोहकी मरोरसों जरमको न गर पावे, धावै चिहु और ज्यों बढावै जाल मकरी; ऐसी दुर्बुझि नूलि फूटके फरोखे नूली, फूली फिरे ममता जंजीरनिसों जकरी. ॥ ७ ॥ बात सुनि चौक उठे वातहिसों लौकी उठे, बातसों नरम हो बातही अकरी; निंदाकरे साधुकी प्रशंसा करे हिंसककी, साता माने प्रजुता असाता माने फकरी; मोख न सुया दोख देखै तहां पेचि जाई, कालसो डराई जैसे नाहरसों बकरी; एसी मुरबुकि नूलो जूके फरोखे जूली, फुली फिरे ममता जंजीरनिसों जकरी ॥ अर्थः- मिथ्यामतिने उर्बुद्धि कहिये, अने मिथ्या चालने उर्गति कहिये, जे पुष्ट बुद्धि , ते एकांत मतीने ग्रहणेकरी रदेबे, तेने त्रणे कालमा मुक्ति न थाय. ॥५॥ हवे फुर्बुधिनी व्यवस्था कहेजेः-जे आत्माथी जिन्न होय ते अनात्मा कहिये. तेथ नात्मानी कथा करे, आत्मानी शुद्धता न जाणे, अने जे श्रात्माने आश्रयी विचार ने तेने अध्यात्म कहिये, ते तेनाथी पुराराध्य के० मुखे समजायो जाय; तेनाथी उर्बुद्धि जीव विमुख रहे डे ॥ ६ ॥ पुर्बुझिनो विचार कहेजेः-कायासाथे प्रीति विचारे; हार जीत करी मायामां गही रहे; हठ पकडी रहे; जेम हारल पदी पोताना पगमां लाकडी पकमीज राखे बोडे नही. वली बीजो दृष्टांत एक बे; जेम कोई एक चोर चुंगली बंध देई करी गोदने मेहल अथवा हवेली उपर चमावे , ते बंधना जोरथी गोह जुमीने पकडी राखे, ने त्यां पोताना पग घटी राखे, पण जे टेक पकडी ते मूके नही, तेम मोह कर्मनी मरोम लागी तेथी बननो ठगेर पामे नही, एटले चम बोमे नही. जेम मकमी जाल वधारती पसारती चारे तरफ दोमे , तेम चारे तरफ दोडती फरे, ए रीते पुर्बुछिये नूली जुग्ने जरुखे फुली रहे, ने ममतारूप 5 बुछिना जंजीरनी बेमीने जकडी रह्यो , ॥ ७ ॥ .. बली एवाने कोई अध्यात्मनी वात कहे त्यारे चोंकी उठे, ने नों जो करी उठे,कदा ग्रह करे श्रने पोताना मनने रुचती वातथी नरम थाय ने मनमानती वात न थाय तो प्रकृति अकारी करे, मोक्षमार्गना साधकनी निंदा करे, अने जे हिंसक अधर्म कहे, तेनी प्रशंसा करे, पोतानी मोटाईने साता सुख समजे असाताने फकीरी जाणे मोदनी वात सुहाय नही, ज्यां कोई दोष जुए त्यां चतुराईनु अनिमान बतावे, अने मृत्युथी एवो डरे के, जेम नाहीरथी बकरी मरे, ए रीते मरतो रहे एम बुद्धि जीव जूट्यो फरे, ने जूठने फरुखे जुलतो ममतारूप बेमीमां बंधाई रह्यो . ॥ ७ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002165
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages228
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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