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________________ __. ११ - श्री समयसारनाटक. अर्थः- ए जे एकांत हणनंगुरपणुं ते मिथ्यात्व पद , तेने पूर करवाने चिद्वि लास अविचल कथा के जीवना अचल पदनी वात सामान्य केवलीना राजा श्री जिनेश्वर देव कहे. ॥ ७० ॥ कोईक पुरुषे बाल्यावस्थामा एक नगर दी होय ने ते पड़ी ज्यारे जुवानीमां श्राव्यो त्यारे फरीथी तेज नगरने तेणे जोयुं त्यारे तेने रेहेतां रेहेतां स्मृति श्रावी के, श्रा नगर तो में बालपणामां जोयु हतुं तेज बे. ॥१॥ हवे अही जीवना अचलपणानो संजव देखाडे:-के, बेहु कालमां जो ते एकज हतो ते वारे ते पुरुषे बालपणामां ते नगर जोयुं हतुं त्यारे तेने जुवानीमां तेनुं स्मरण थयु ए वात सत्य बे. एटले बने वखतमां नगर तेज खलं , तेम एक पुरुषनो अनुनव के जोगवेबु कार्य तेने बीजो पुरुष जाणी शके नही. ॥ २ ॥ ज्यारे था वात प्रगट सां जली अने जैनना शुरू मतनी वात सांजली त्यारे एकांतवादी पुरुषे प्रतिबोध पामीने जैनमत ग्रहण कीधो भने बौधमतने बोडी दीधो. ॥ ३ ॥ . हवे बौधमतीना दणनंगुरपणामां सद्दहणा केम थई ते कहे : श्रथ बौध मतीकी सहहना कथनः॥ सवैया इकतीसाः॥- एक परजाय एक समैमे विनसि जाइ, दूजी परजाय दूजै समै उपजति है; ताकी बल पकरिके बोध कहै समै समै, नवो जीव उपजे पुरातनकी षति है; ताते मानै करमको करता है और जीव, जोगता है और बाके हिय ऐसी मति है; परजै प्रवानको सरवथा दरव जाने, ऐसे कुरबुद्धिकों अवश्य उरगति है ॥४॥ अर्थः- हरकोई अव्यनो एक समयमा जे एक पर्याय ,अव्य, क्षेत्र, काल, ना वने लीधे अवस्था नेद बे, तेतो पर्याय ते समदमांज विनाश पामे , अने बीजा समयमां बीजो पर्याय उपजे बे, एवी जैननी वाणी बे. ते वातनेज बौध मतीवाला निश्चलपणे पकमी राखीने कहे जे के, समय समय नवो नवो जीव उपजे बे, श्रने पाउला जुना जीवनी हाणी थायडे; वली आम माने के कर्मनो कर्ता कोई बीजो जीवने अने कर्मनो जोक्ता कोई बीजोज जीव जे. एम बौधमति कहे; अव्यना प र्यायतो समयमा फरे बे, तेने बौधमति पर्याय प्रमाणने सर्वथा प्रकारे अव्यज जाणे बे. एवा पुर्बुछिने अवश्य उर्गतिज प्राप्त थाय . ॥ ७ ॥ हवे उर्बुजि अने उर्गतिनु लक्षण कहे जेः-अथ उगति स्थिति लक्षणः॥ दोहराः ॥-पुर्बुद्धी मिथ्यामती, पुर्गति मिथ्या चाल; गहि एकंत उर्बुझिसों, मुगति न हो त्रिकाल ॥ ५ ॥ कहै अनातमकी कथा, चहै न श्रातम शुद्धि, रहै अध्यातमसों विमुख, मुराराधि पुर्बुकि ॥ ६ ॥सवैया इकतीसाः ॥-कायासे विचारि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002165
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages228
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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