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________________ श्री समयसारनाटक. दवे अजिमानी तथा ज्ञानीनी अवस्था उपर दृष्टांत श्रपेढे:अथ अजिमानी तथा ज्ञानी व्यवस्था कथनंः ॥कवित्त बंदः॥ - जैसे पुरुष लखे पदार ढि, नूचर पुरुष तांहि लघु लग्ग; नूचर पुरुषलखे ताकों लघु, उतर मिलै डुडुको भ्रम जग्ग, तैसे श्रनिमानी उन्नतगल, और जीवको लघुपद दग्ग; अजिमानीको कहे तुछ सब, ज्ञान जगे समतारसजग्ग ॥ ४० ॥ १०१ अर्थः- जेम कोई माणस पद्दाम उपर चड्यो होय तेने नूचर के० तलाटीपरना माणसो न्हानो एम जुए, अने तलाटी वाला माणसने पहाड़ उपर चडेलो न्हाना जुए, अने पी पद्दाम उपर चडेलो देवे उतरी तलाटी वालाने मले त्यारे बेनो नाना पणानो भ्रम दूर थाय, तेम अजिमानी पुरुष उंची गरदन राखनारो, अन्य, जीवने नाना जुए, तुब जाणे, अने बीजा पुरुषो ते श्रनिमानी पुरुषने तुब जाणे, एम रस्परस विचारमां विषमता रहे बे, ते ज्यारे ज्ञान जागे त्यारे बेखना मनमां विषमता मटीने समपणुं श्रवी जाय ॥ ४० ॥ वे एकला अजिमानीनी व्यवस्था कड़े बेः - श्रथ अजिमानी यथाः ॥सवैया इकतीसाः॥-करमके जारी समुजे न गुनको मरम, परम नीति अधरम रीति गहे है; दोहि न नरम चितगरम घरमहुते, चरमकी दृष्टिसों जरम मूली रही है; शासन न खोले मुख वचन न बोले सिरधूनाएहू न डोले मानो पाथरके चहे है; दे खनके हाउ जव पंथके वटाउ ऐसे, मायाके खटाउ अभिमानी जीव कहे हैं. ॥४१॥ अर्थः- जे करम बंधथी श्रति जारी बे, जे द्वेषने गुण जाणेबे, पण गुणनो मर्म जा तो नथी; ने परम अन्याय तथा अधर्मनी रीत ग्रही राखेखे; जेना चित्तने विषे नरमा: श तथा दया परिणाम नथी; द्वेषनो अति धर्म ताप डे, तेथी जे गरम रहेबे, ज्ञान दृष्टि नथी अने चर्मरूप दृष्टिवने ममां मूल्यो फरे बे, कोई विकट श्रासन बांधे तेने खो ले नही, ने मोमेथी वचन बोले नही, मौन व्रती रहे, तेने ज्ञानी महा पुरुष जाणीने कोई माथु नमावे, तो तेनो सत्कार ने अंग चेष्टा पण न करे, जालिये पथर थवानीज शा करतो होय; नेवली जेम बालकने डराववाने हाउ कहीये बइये तेम लोकोने डरावाने वेष धरी दाउ बनीने बेसे, छाने जव मणना मार्गमां वटाउना सरखो चाले; एरीते माया जालना खाटनारा अजिमानी जीवने उलखीये ॥ ४१ ॥ Jain Education International दवे ज्ञानी जीवनी व्यवस्था कहे बेः:- छाथ ज्ञानी यथाः ॥ सवैया इकतीसाः॥ - धीरके धरैया जवनीरके तरैया जयजीरके हरैया वर वीर ज्यों उमड़े हैं; मारके मरैया सुवीचारके करैया सुख ढारके ढरैया गुनलोसों लह लहे हैं; For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002165
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages228
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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