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प्रकरणरत्नाकर जाग पहेलो.
सा नहिं व्यापे; तहाँ अवलंब यापनो थपे, ता कारन प्रमाद उतपाती, प्रगट मोद मारगको घाती. ॥ ३३ ॥ जे प्रमाद संयुक्त गुसांई; ऊहि गिरिहि गिडुककी नांई; जे प्रमाद तजि उद्धत दोही, तिन्हिको मोष निकट हग सोही ॥ ३४ ॥ घटमें है प्रमाद जबताई, पराधीन प्रानी तबतांई; जब प्रमादकी प्रभुता नासै, तब प्रधान अनुज परगासे ॥ ३५ ॥
अर्थः- ए रीते श्री जिनेंद्र देवे वस्तुनी व्यवस्था कही बे, ने तेवीज श्राज्ञा प्र माघी में पण कही बे, अने जे मुनिराज प्रमाद दशामां बे, तेने तो शुजाचार ए टले शुभ क्रियानुं आलंबन लीधाथीज कार्य सिद्धि थाय ॥ ३२ ॥
ने जे मुनिराजने श्रात्माना अधिक वीर्यांशने लीधे प्रमाद दशा न व्यापे त्यां पोतानुं श्रालंबन पोते लिये, तेमाटे प्रमाद तो उत्पाती बे; अने प्रगट रीते मोक्ष मार्गनो घात करनार बे, अने अंतरायनो करनार बे ॥ ३३ ॥
गुसांई देशी जापानो शब्द बे, एनो अर्थ मुनिराज थाय छे. जे मुनिराज प्रमाद संयुक्त बे, ते तो गिडुक के० दमानी रीते उठे बे, ने पडे बे, पण स्वस्थताने पामे न ही ने जे प्रमाद बोडीने अप्रमादपणे उठीने उजा रहे बे, तेने पोतानी दृष्टि नजीक मोक्ष बे. ॥ ३४ ॥ ज्यां सुधी घटमां प्रमाद बे, त्यांसुधी ते पराधीन बे, अने ज्यारे श्रात्मानी शक्ति जागे बे, त्यारे प्रमादनी प्रभुता नाश पामे बे. त्यारे तो पोताना प्र धान अनुजवनो प्रकाश थाय बे ॥ ३५ ॥
॥ दोहराः ॥ - ता कारन जग पंथ इत उत शिव मारग जोर; परमादी जगकों ढूंके, परमाद सिव र ||३६|| जे परमादी खालसी, जिनके विकलप जूरि, दोहि सिथिल अनुज विषे, तिन्हिको शिवपथ दूरि ॥ ३७ ॥ जे विकलपी अनुजवी, शुद्ध चेतना यु क्त; ते मुनिवर लघु कालमें, दोहि करमसों मुक्त ॥ ३८ ॥ जे परमादी खालसी, ते श्रभिमानी जीव, जे विकलपी अनुभवी, ते समरसी सदीव ॥ ३५ ॥
अर्थः- तेमाटे जगत्नो मार्ग प्रमादीनी तरफ बे, अने अप्रमादीनी तरफ मोद मार्ग बे, केमके, जे प्रमादी होय ते जगत्ने जुए ने अप्रमादी मुक्ति तरफ जुए बे ॥ ३७ ॥ जे प्रमादी बे, ते घालसु बे. तेने नूरि के० घणा विकल्प उठे बे, अने पो ताना अनुवमां तेने शिथिलपणुं रहे बे, अने तेने मुक्ति मार्गरूप स्वरूपाचरण पूर बे ॥ ३७ ॥ ने जे विकल्पविना अनुजवमां वसे बे ने शुद्ध चेतना युक्त बे, ते मु नीश्वर थोमा कालमां कर्मश्री मुक्त थाय बे ॥ ३८ ॥ जे प्रमादी अने श्रासु बे, तेने बुद्धिनिमानी कहिये. ने जे विकल्प रहित पोताना अनुभवमां बे तेने तो सदाय समरसी कहिये ॥ ३७ ॥
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