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________________ श्री समयसारनाटक. ६एए ध्यात्म ज्ञानमां पूर्ण थयो , तेनेज सम्यग्दृष्टि कहिये; परमार्थने पामनार पुनित के पवित्र रूप थयो जाणवो. श्रात्मारामना अनुनव रसमां बारे प्रहर गढे के संपूर्ण मन थई, एज पाठ पढे , एटले नणे , ॥२७॥ वली जेम चीमटी के हाथनी चिमटी अथवा चिपीयो तेवडे कई नानी वस्तुने पकमी लश्ये उश्ये, तेम पारका गुण चुंटी लेवाने जेनी एवी चपटी बे, अने विकथा सांजलवाने जे बने कानने बंध करी राखे , जेनुं चित्त सरल ने निष्कपटी , जे निरहंकारीपणे कोमल वचन बोले : काम क्रोधादिक विकारविना सौम्य दृष्टि जे राखे , वली जे मोम केसेगढेहें केमी एना घडाजेवं हृदय कोमल राखे बे, अने पोताना अलख समाधि खरूपने साध वाने जेनी सुमति जागी बे, अयोगी अवस्थामा जेनी परम समाधि थने, तेने साधवाने जेनुं मन वध्यु , तेज सम्यग् दृष्टि परमार्थना पामनार पुनित के पवि त्र रूप थई रह्या डे, ने तेज आत्मारामना अनुनव रसमां थावे पहोर दृढ मग्न थई एज पाठ पढे . ॥ २ ॥ हवे समाधि स्वरूप कहे जेः- श्रथ समाधि वर्णनः॥दोहराः॥- राम रसिक अरु रामरस, कहन सुननकों दोश; जब समाधि परगट नई, तब पुविधा नहि को. ॥२॥ नंदन वंदन थुति करन, श्रवन चितवन जाप; पढन पढावन उपदिसन, बहुविध क्रिया कलाप. ॥३०॥ शुझातम अनुनौ जहां, सु नाचार तिहि नांहि; करम करम मारग विशे, शिव मारग शिवमांहि.॥३१॥ अर्थः-श्रात्माराम जे जे ते रसिक के रस नोक्ता , अने राम के रमतुं ते रस रूप ने, केहेवाने सांजलवाने रसिकने रस बेन बे, पण जेवारे एनेविषे समाधि प्रगट थाय ने त्यारे बे पणुं नथी रेहेतुं. त्यारेतो रसिक श्रने रस ए बे एकज वस्तु ॥णा राम के रसिक अवस्था धारतो एटली क्रिया करे बे के, नंदन के० श्रानंद पामे , वंदन के प्रणाम करे, थुती के० नात नातना गुणनी स्तुति करे बे, अने एवाज गुण सांजली एनुंज चितवन करे, एनोज जाप जपे बे, नणे, नणावे, उपदेशे, एवी रीते र सिक अवस्थामां जात नातना क्रिया कलाप डे ॥३०॥ प्रर्वे कही जे क्रिया तेने करता करतां ज्यां शुभ यात्मानो अनुनव थाय शुना चार बुटीजाय, कृत-कृत्यपणे ते अयोगी दशामां बे, कर्म जे जे ते कर्म मार्ग मांज रहे, एटले संसार मार्गनेविषेज रहे, शुज कर्म पण संसार मार्गमां बे श्रने शिव मार्ग ते शिवमांहे एटले शुफ आत्माने विषेज बे. ॥३१॥ ॥चोपाईः॥-इहि विध वस्तु व्यवस्था जैसी, कही जिनिंद कही में तैसी; जे प्रमाद संयति मुनि राजा, तिन्दिको शुजाचारसों काजा. ॥ ३२ ॥ जहां प्रमाद द Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002165
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages228
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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