SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 128
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६एन प्रकरणरत्नाकर नाग पहेलो. कहे मेरोई सहर है; याहि जांति चेतन अचेतनकी संगतिसों, साचसों विमुख नयो फूलमें बहर है ॥ ॥ अर्थः-सात धातु जे जे पहामनी धरतीनी माटी जेवी बे, तेने संपत्ति करी वखा णे . पोतानी शुरू क्रियामां अमृत जाणे , अने ज्ञानमां फेर समजे बे; एटले क्रिया थकी सिफि जाणे, ने शान थकी नही जाणे. जे पोतानुं चिदानंद स्वरूप ने, तेने ग्रहे नही, पण शरीरादिक जे जे तेने आत्मारूप जाणे. अने जे साता वेदनीय उपजे , तेने तो समाधि करी जाणे बे; असाता वेदनीयने कहर के उपभव माने डे, कोपर्नु कृपान जे खडग ते लईने रहे थे; मान ने अहंकार रूप मद पीइने रहे; हेयानेविषे मायानो मरोम राखे, लोचनी फेर खाया करे , एवी रीते श्रचेतननी संगती थकी एटले जम पुजलनी संगतीश्री साच थकी विमुख थयो, ने जुम्मा ब हर हे के० तत्पर थई रह्योबे, ॥२४॥ अर्थ स्पष्ट. ॥२५॥ हवे सम्यग् दृष्टि साहुकारनी व्यवस्था कहे बेः-श्रथ सम्यकदृष्टि व्यवस्थाकथनं: ॥ दोहराः॥- जिन्हके मिथ्या मति नही, ज्ञान कला घटमांहि; परचे श्रातम रामसों, ते अपराधी नांहि ॥२६॥ अर्थः- जेनी मिथ्यामति नाश पामीने घटनेविषे ज्ञान कला प्रगटी बे, जेणे श्रा त्मारामने उलख्यो , ते लोक अपराधी नथी, साहुकार ॥२६॥ हवे झानीनी व्यवस्था कहे बेः- श्रथ ज्ञानी यथाः॥सवैया इकतीसाः॥- जिन्हके धरम ध्यान पावक प्रगट नयो, संसे मोह वि चम विरष तीन्यो वढे हैं, जिन्हकी चितौनि श्रागे उदे खान नूसि जागे लागे, न क रमरज ज्ञान गज चढे हैं; जिन्हिकी समुझिकी तरंग अंग अंगममें, श्रागममें निपुन अध्यातममें कढे हैं; तेई परमारथी पुनित नर श्राों जाम, राम रस गाढ करे यहै पाठ पढे हैं ॥२७॥ जिन्हकी चिहुंटी चिमटासी गुन चूनबेकों, कुकथाके सुनबेकों दोउ कान मढे हैं; जिन्हको सरल चित कोमल वचन बोले, सोम दृष्टि लिये मोले मोम कैसे गढे हैं; जिन्हि के सगति जगि अलख अराधिबेकों, परम समाधि साधिवेगो मन बढे हैं; तेई परमारथी पुनित नर आवों जाम, राम रस गाढ करे यहे पाठ पढे हैं।श्न॥ ___ अर्थः- जेना हैयामां धर्म ध्यानरूप पावक के० अग्नि प्रगट थयो, तेथी संशय, मो ह अने विन्रम ए त्रणे वृक्षरूप , ते वढे के० बली गया , जेनी चितौनी के ज्ञा नदृष्टि श्रागल उदयरूप कुतरो जसीने जागी जाय ,श्रने जे ज्ञानरूपी गजराज उपर चढी रहे, तेथी जेने कर्मरूप रज लागतीनथी, बीजानुं जे अगम अंग बे, तेमां जेनी समजना तरंग उठी रह्या बे एवा आगम के जैन वाणीमां जे निपुण थयो, अने श्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002165
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages228
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy