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________________ प्रकरणरत्नाकर जाग पड़ेलो. जीवनी अनंत सत्ता कही, एवा अनंतपणे करीने कोईनी सत्ता कोई साथे मले नदी, एटले जुदी जुदी अनंत सत्ता बे, अने प्रत्येक सत्तामां अनंत गुणनुं ज्ञान बे, अने एक एक सत्तामां अनंत पर्याय अनंत अवस्था नेद फिरे तेथी जे पूर्वे एकमां श्र नेक कर्तुं ते एरिते . स्याद्वाद मतमां ए वात प्रमाण बे, अने सत्पुरुषनां वचननी पण एज मर्यादा बे, तथा एज मत सुखनुं पोषण करनार बे, अने मोनुं निदान एटले मूल कारण बे ॥ १८ ॥ ६६ दवे ए वचन की जे वस्तुनो धर्म ग्रह्यो जाय तेज सत्ताधर्म कहीये तेथी एक जीव द्रव्यनी सत्ता कहे :- अथ एक जीव द्रव्यसत्ता वर्णनं : ॥ सवैया इकतीसाः ॥ - - साधि दधि मंथन श्रराधि रसपंथ निमें, जहां तहां ग्रंथ निमें सत्ताही को सोर है; ज्ञान जानु सत्तामें सुधा निधान सत्ताही में, सत्ताकी दुरनि सांकि सत्तामुख जोर है; सत्ताको सरूप मोख सत्ता जूलै यहै दोष, सत्ताके जलंधे धूम धाम चिकू घर है; सत्ता की समाधिमें विराजि रहे सोई साहु सत्तातें निकसि और गहे सोई चोर है ॥ १७ ॥ अर्थः- जे वस्तुविषे बती देखाय, जेम दहीना मंथनमां घीनी सत्ता साधिये, जे औषधमां मधुर रस बे, तो तेथी वस्तु नीपजे बे, माटे रस मार्गमां सत्ताविना सिद्ध नथी. जे वस्तुमां बताएंडे तेने सत्ताक दिये. शास्त्रमां ज्यां त्यां ग्रंथोनेविषे सत्तानोज सोरके० शब्दबे. ज्ञान रूपी जानुनो उदय जीवनी सत्तामां निपजे, वली सुधा के० मृत ते पण सत्तामांज पामिये, निधान पण सत्तामांज पामिये. जे सत्तानुं दुरनि के० पाव ते संध्या रूपबे, अने जे सत्तानी मुख्यताबे तेज जोर के प्रजात रूपबे. जी वनी सत्तानुं जे स्वरूप वे तेज मोद बे, अने सत्ताने जुली जवुं एज दोषरूप बे. स तानुं उलंघन करवाथी चीदोजर के चारों तरफ धामधुम नीपजे, जे पोतानी सत्ता सद्भूतपणुंबे, तेमां विराजमान थई रहे तेने साहुकार कहिये, छाने जे पोतानी सत्ताथी नीकलीने अन्नी सत्ताने ग्रहे तेने चोर कहीये. ॥ १७ ॥ हवे सत्तानी समाधिनुं वर्णन करे :- श्रथ समाधि वर्णनं: ॥ सवैया इकतीसाः ॥- - जामें लोक वेद नांदि थापना उबेद नांहि पाप पुन्य खेद ait क्रिया नादि करनी; जामें राग दोष नांदि जामें बंध मोष नदि, जानें प्रभु दास नाकास नादि धरनी; जानें कुलरीत नांदि जामें हारजीत नांहि जामें गुरु शिख नांहि विष नांदि नरनी; श्राश्रम वरन नांहि काढुकी सरनि नांदि ऐसी सुद्ध सत्ता की समाधि भूमि वरनी. ॥ २० ॥ अर्थः- मां लौकिक वेदवुं नथी, अने जेमां स्थापनानो उबेद नथी, जेमा पाप Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002165
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages228
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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