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. श्री समयसारनाटक.
६एए हवे वस्तु कोने कहिये अने सत्ता कोने कहिये ते बतावेजेः-अथवस्तुसत्तावर्णन:॥ दोहराः॥- उपजे विनसे थिर रहे, यह तो वस्तु वखान; जो मरजादा वस्तुकी सो सत्ता परवान. ॥ १६ ॥ __अर्थः- उत्पत्तिवंत, विनाशवंत, स्थिरतावंत एतो वस्तुनुं वखाण , अने जे वस्तु नी मर्यादा जे परिमाण ते धर्मने सत्ता कहीये, ए अनुनव प्रमाण ग्राह्य . ॥ १६॥ हवे केवा केवा अव्यनी केवी केवी सत्ता जे ते कहेजेः
श्रथ सत्ता व्यवस्था वर्णन:॥ सवैया श्कतीसाः॥- लोकालोक मान एक सत्ता है आकाश दर्व, धर्म दर्व एक सत्ता लोक परिमिति है; लोक परवान एक सत्ता है अधर्म दर्व, कालके अणु असंख सत्ता श्रगनिति है; पुदगल शुक परवानकी अनंत सत्ता, जीवकी अनंत सत्ता न्यारी न्यारी थिति है; कोउ सत्ता काहुसों न मिलै एकमेक होई, सबे असहाययों अनादि हीकी थिति है. ॥ १७॥
अर्थः- श्राकाश अव्यनी मर्यादा लोकालोक लगे एक बे, तेथी आकाश व्यनी एक सत्ता , अने धर्मास्तिकाय अव्य लोक प्रमाण रूप , तेथी धर्म अव्यनी एक सत्ता बे, अने अधर्मास्तिकाय अव्य पण लोक प्रमाण एक रूप ले तेथी अधर्म अव्य नी एक सत्ता , अने कालना अव्यना अणु ने ते लोकाकाश प्रदेश परिमाणे असं ख्यात डे, तेथी काल अणुनी असंख्यात सत्ता , ए कदेवं दिगंबर संप्रदायर्नु , अने अने योग शास्त्रमा पण का बे, अने लोकविषे पुजलरूपी शुरू परमाणुनी पण अ नंत सत्ता बे, अने लोक विषे जीव अनंत बे, तेथी जीवनी पण अनंत सत्ता , तेथी ज जीवाजीवनी जुदी जुदी क्षेत्रावगाहना बे, जे व्यनी जे सत्ता होय ते बीजी कोई व्यनी सत्ता साथे मले नही, जो एकमेक थ जाय तो सर्व सत्ता असहाय पणे वर्ते, माटे एकमेक न थाय एवी अनादि कालनी स्थितिजे. ॥ १७ ॥
हवे चेतन अव्यनी सत्तानुं वर्णन करेजेः- श्रथ चेतन सत्ता वर्णनं:॥सवैया इकतीसाः।- एशबदो अव्य इन्ददीको हे जगतजाल, तामें पांथ जम एक चेतन सुजान है; काहुकी अनंत सत्ता काहुसों न मिले कोई, एक एक सत्तामें अनंत गुण गान है; एक एक सत्तामें अनंत परजाय फिरे, एकमें अनेक श्ह नांति परवान है; यहे स्यादवाद यहै संतनिकी मरजाद, यहे सुख पोष यहै मोदको निदान है. ॥२०॥
अर्थः- ए गए अव्ये करी एथीज जगतजाल वर्ते, ते बनेविषे पांच अव्य जड रूपी बे, ने एक चेतनरूपी अव्य ते जाणनार जे. अंडी पुद्गलनी अनंत सत्ता कही,
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