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श्री समयसारनाटक.
६ए३ संयोगयी लोको तेने नूषण केहेवा लागे. पण मूल वस्तुजे कंचन ते काई जतुं रद्यु नथी, केमके, ज्यारे ते घाटने अग्निमां गाली नाखे त्यारे पाटुं ते सोनु केहेवाय, तेम श्रा जीव जे डे, ते अजीवरूप कर्म पुद्गल इत्यादिक बीजा पण पुजलना संयोगथी एक कोमी साडी संतागुं लाख कुल कोमीमां बहुरूपे थयो, तोपण विविध नथी थयो। केमके, चेतनता कई गई नथी; तेमाटे ते खरूपमा जीव ब्रह्मज केहेवाय बे, जेनो वि स्तार मोटो तेने ब्रह्म कहीये. ॥७॥ आत्मानी अनुभूति ते सुबुझि सखीनेकहेबे, हे सखी, जो श्रा श्रापणो ईश्वर विराजे , अने ए ईश्वरनी दशा सर्व एनेज शोने, एवी विरुष्ता बीजे ठेकाणे न शोने. लदाणवडे एकतामा जोईये तो एक रूप , श्रने अपर सत्ताए देखीये तो अनेकरूप , अने इंछ दशामां देखीये एटले श्र झान दशामां देखीये अने ज्ञान दशामां देखीये तो विविध रूप बे, ते विविधपणुं कहेजेः- क्यारेक तो पोतानुं पद जे पोतानुं स्वरूप तेने संजारीने जुए, अने क्यारेक तो पोताने विसरीने पोते मोदमां पडे. हे सखी, ए हिज ईश्वर घटने अंतयापक रूप बे, तेथी जे जे अवस्थामां बाप बे, तेवारे ज्ञाननेविषे पण बीजो कोश् नथी अने श्र झाननेविषे पण बीजो को नथी.॥ ए॥ इवे एना उपर दृष्टांत कहेजेः- जेम कोई नट होय ते बहु वेष धरे, ने तेते वेषनी कला प्रगट करेजे, त्यारे जगत् तेने कुतु हल समजे पण नट पोते पोतानी किया जाणे, ने तेणे धरेला वेषथी पोते जुदोडे, एवं जाणे. तेम घटनेविषे चेतन राजा रूप नट बे, ते विनाव दशा धरीने रूप वि शेष करे, पण ज्यारे सुदृष्टि खोली जुए त्यारे तो पोतानुं पद उलखे अने इंछ वि चारनी दशाने पोते लेखामां गणे नही. ॥ १० ॥ हवे चेतन नटनी सघली चेतना एक बे, ते कडे:- श्रथ चेतना उपादेय कथन:
॥श्रमिल बंदः॥- जाके चेतननाव चिदातम सोश है; और जाव जो धरे सु औरे कोश है। यों चिनमंमित नाव, जपादे जानते; त्याग जोग परनाव पराये मानते ॥१९॥
थर्थः- जेनेविषे चेतन नाव , तेने चिदात्मा अथवा चिबूप कहिये , श्रने ए चेतनाजावथी बीजो जाव जे धारे, तेतो कोई बीजो डे, एथी चेतना मंडित जे नाव ने तेतो उपादेय रूप जाणवो, अर्थात् पोतानो करी जाणवो, श्रने चेतना जावधी जे परजाव , तेसघलो त्यागवा योग्य बे ने तेने पारको करी मानी लेवो.॥ ११॥
हवे जे सम्यग् दृष्टि चेतना उपादेय राखीने मोद मार्गना साधक थया तेनी श्र वस्था कहेः- श्रथ सम्यग्दृष्टि मोड मारगको साधक कथन:
॥सवैया इकतीसाः ॥- जिन्दकेसुमति जागीनोगसों नये विरागी, परसंग त्यागी जे पुरुष त्रिजुवनमें; रागादिक जावनिसों जिन्हकी रहनि न्यारी, कबहु मगन व्है रहै
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