________________
प्रकरणरत्नाकर जाग पड़ेलो.
अर्थः- दुःखने दोषनुं निदान जे बंध तेनो द्वार संपूर्ण थयो. दवे सुखनुं स्थान जे मोद तेनो द्वार संदेपथी वरणयुं बुं. ॥ १ ॥
हवे मोक्ष द्वारने श्रादि ज्ञान विलासने नमस्कार करे बे:-थ ज्ञान विलास वर्णनंः
६८०
॥ सवैया इकतीसाः ॥ - नेद ज्ञान रासों डुफारा करै ज्ञानी जीव, खतम करम धारा जिन्न जिन्न चरचै अनौ अन्यास लहै परम धरम गहै, करम जरमको ख जानो खोलि खरचै; यही मोखमुख धावै केवल निकट यावे, पूरन समाधि लहै पू रनके परचै; यो निरदोर याहि करनो न कटु और ऐसो विश्वनाथ ताहि बना रसी चै ॥ ए८ ॥
अर्थः- जेम कोई परीक्षानो करनार पुरुष मुद्रा प्रमुख द्रव्यने सुलाकनी श्रारवडे दी सुधातु बे, के कुधातु बे, तेनो निश्चय करे बे, तेम ज्ञानी जीव बे, ते नेद ज्ञान रूपी र वडे श्रात्मा तथा कर्म ए बेउने जुदा करे बे, अने ते बेउने जुदा जुदा चरचे के० तेमां यात्मिक धाराने विषे तो अनुजवनो अभ्यास धारण करे, तेथी परम धर्म के शुद्ध समाधि तेनुं ग्रहण करे; अने कर्मजालने जुदी जाणी बे, तेने सत्ता कर्मरूप खजानो खोलि खरचे के० विखेरी नाखे, तिहां निर्जरा थाय, एवी रूपक श्रेणिने लीधे मोहना सुखने धाय, त्यां केवल ज्ञान दुकको आवे, अने पूर्ण म स्वरूपना परिचय थकी पूर्ण समाधि पाने, पढी जव भ्रमणनी दोर बांडीने निर्दोर थाय. ते पढी तेने कई बीजुंकृत्य करवानुं बाकी रहे नहीं; ने तेथी ते विश्वनो ना थयो, तेने बनारसी दास पूजे बे ॥ ए८ ॥
मा
हवे सुबुद्धि विलास वडे आत्मस्वरूप सधाय ते अधिकार कहे :- नी सुबुद्धि विलास वर्णनंः
ì
॥ सवैया इकतीसाः ॥ - काहु एक जैनी सावधान व्है परम पैनी, ऐसी बुद्धि बै घटमांहि डारि दीनी है; पैठी नौ करम जेदि दरब करम बेदि, सुनाउ विजाज ता की संधि सोधि लीनी है; तहां मध्य पाती होइ लखी तिन्दि धारा दो, एक मुधा मई एक सुधारस जीनी है; मुधासों विरचि सुधा सिंधू में मगन नई, ए ती सब कि या एक समै वीच कीनी है ॥ एए ॥ ॥ दोहराः ॥ - जैसी बैनी लोदकी, करै एक सों दोइ; जड चेतनकी निन्नता, त्यों सुबुद्धिसों होइ ॥ ३०० ॥
अर्थः- कोई एक जैनी जैन श्रागमना जाणनारे सावधान थईने परमपैनी के० ति तीक्ष्ण एवी बुद्धिरूप बैनी के० सोनीनी बीपी ते शस्त्र विशेष, पोताना घटमां नाखी दीदी, पढी ते सुबुद्धिरूप बीनी नौ कर्म के आत्म प्रदेशने विषे श्लेष्म रूप जे राग द्वेष परिणाम बे, ते नौ कर्मना नेद तेना पुफलरूपी द्रव्य कर्मने बेदीने स्व
Jain Education International
זה
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org