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________________ श्री समयसारनाटक. ६नए जाव अने विनावतानी संधी शोधि लीधी बे, त्यां सांधनेविषे मध्यपाती के० विहा ईत बनीने ते पुरुष बे धारा लखी, तेमां एक तो मुधाम के श्रज्ञान मय ने, ने बी जी सुधारस नीनी के अमृत रस नीनी ज्ञान समाधिमय बे, बहीं राग द्वेषादिकनी दशा बे, ते मुधा दशा बे, तेथी विरचि के० वैराग धारीने सुधा सिंधुमां मग्न थएँ, ज्ञान समाधिरूप सुधा समुजमां मग्न रेहेवं, ए जे क्रिया कही ते सर्व क्रियानो विचार एक समयमां करे ॥ एए॥ जेम लोढानी बीणी एकना बे नाग करे बे, तेम जड चे तननी एकता नांगीने निन्नता करवी ते सुबुकिथकीज थाय बे ॥३०॥ हवे जेवो सुबुछिनो विलास , तेवो कहे जेः- श्रथ सुबुद्धि विलास कथन: ॥सवैया इकतीसाः॥-(सर्व ढस्वादर चित्रालंकार) धरति धरम फलहरति क रम मल, मन वच तन बल करत समरपन; नखति असन सित चखति रसन रित, लखति श्रमित वित करि चित दरपन; कहति मरम धुर ददति नरमपुर, गहति प रम गुर उर उपसरपन; रहति जगत हति लहति जगति रति, चहति श्रगति गति यह मति परपन ॥१॥ अर्थः-सुबुकि जे जे ते धरम रूप फलने धारेने, कर्मरूप मलने हरे, अने ए क्रियाने विषे मनबल, वचनवल अने कायानुं बल तेने समर्पण करे एटले ए त्रणे बल ते क्रियामां कामे लगाडे. जखति के खाय बे, सित के० शीतल नोजन ते रसन ज के जीनना स्वादविना नोजन जमे, अमित वितके परिमाण विनानुं पो झानादिक धन चित्तरूप दर्पण वडे जुए, मर्म धुर के मर्मनी वात जे जीवनुं नाप ते कहे, भ्रम पुर के० मिथ्या नगर तेने बाले, अने अंतर्ने विषे उत्कृष्ट गुरुनां नने ग्रहण करे, अने हृदयने विषे उपसरपन के० स्थिरता धारे श्रने जगतनो हि नकारी थको रहे, त्रणे लोकनी नक्ति श्रने रति के सुख तेने लहे, एटले सर्व लो कने प्रजनीक थाय. होई श्रगति गति के जेनेविषे बीजा सामान्यनी गति थती नथी, तेवी मोदगति चाहे, एवो सुमतिनो उत्कृष्ट विलास जे. ॥१॥ हवे ज्ञातानो विलास कहे बेः- श्रथ ज्ञाता वर्णन:॥सवैया इकतीसाः॥-(सर्व गुरु थदर चित्रालंकार) रानाकोसो बाना लीने थापा साधे थाना चीने, दाना अंगी नानारंगी खाना जंगी जोधा है; माया वेली जेती तेती रेतेमें धारेती सेती, फंदाहीको कंदा खोदे खेतीकोसो लोधा है; बाधा सेती दांता लोरे राधासेती तांता जोरे, बांदी सेती नांता तोरै चांदी कोसो सोधा है; जानै जाही ताही नीके माने राही पाही पीके, गनै बाते माही ऐसो धारा वाही बोधा है. ॥२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002165
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages228
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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