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श्री समयसारनाटक.
ឌុចS हवे ज्ञातानी क्रिया कहे :- थथ झाताकी क्रिया कथन:॥ सवैया इकतीसाः॥- ज्ञानी नेद झानसों विलेडि पुदगल कर्म, श्रातमाके धर्म सों निरालो करि मानतो; ताको मूल कारन अशुद्ध राग नाव ताके, नासिवेको शुद्ध अनुनौ अन्यास गनतो; याही अनुक्रम पररूप निन्न बंध त्यागि, श्रापुमांदि अपनो सुनाउ गहि थानतो; साधि शिवचाल निरबंध होतु तिहू काल, केवल विलोक पाई लोकालोक जानतो. ॥ ५॥
अर्थः- ज्ञाता होय ते नेद ज्ञानव पौद्गलिक कर्मनुं विलक्षण केम करे ते कहे . श्रामिक धर्मथी पौदगलिक धर्मने जूदो करी जाणे, एम विलक्षण करे, अने ते पु दगल धर्मनुं मूल कारण अशुद्ध रागद्वेषादिक नाव , तेनो नाश करवाने शुद्ध श्र नुजव अन्यास जे रीते पूर्वे कह्यो ते प्रमाणे अवस्था देखी श्रन्यास राखे. ए रीते अनुक्रमे प्रथम सुदृष्टिथी शरीररूप निन्न करवू, ए अनुक्रमें पूर्व संबंधथी अनादि कर्म बंधने त्यागीने पोताने विषे पोतानोज ज्ञानादिक खन्नाव ग्रहण करे, एम शिव पदनी साधना करीने त्रणे काल निबंध थाय, तेवो थई केवल ज्ञान पामीने लोकालोकने जाणनार थाय. हवे सम्यक्त्व धारीनु पराक्रम कही बतावे बेः- श्रथ सम्यक्त्वधारी वैनव वर्णन:
॥ सवैया इकतीसाः॥- जैसे कोउ हिंसक अजान महा बलवान, खोदि मूल विर ख उखारे गहि बाहसों; तसे मतिमान दर्वकर्म नावकर्म त्यागि, है रहै अतीतमति झानकी दसाहुसों; याहि क्रिया अनुसार मिटे मोह अंधकार, जगे ज्योति केवल प्र धान सवि ताहुसों; चुके न सकतिसों बुके न पुदगलमांहि, ढुके मोषथलकों रुके न फिरि काहुसों. ॥ ए६॥
अर्थः- जेम हिंसक पुरुष जील प्रमुख जे हिंसानां फलथी अजाण , अने महा बलवान , ते वृदना मूलने खोदीने पठी पोताना जुजाना बले करी तेने उखेडी नाखे बे, तेम मतिमान के सम्यक्त्वी पंडित जे , ते पुद्गल स्वरूपी अव्य कर्मने अने झा नावरणीय, दर्शनावरणीय इत्यादि श्राप नाव कर्मने त्यागीने ज्ञान दशावडे अतीत के० कर्मरहित थई रह्यो , श्रने क्षण दणमा ए क्रियाना अनुसारे मोह अंधकारने म टावे , अने तेथी केवल ज्ञाननी ज्योति उदय थाय, ते ज्योति मतिज्ञान प्रमुख सर्व ज्ञानोमां प्रधान बे, थने एथी अनंत वीर्य प्रगटे, ने फिरि ए शक्तीते चुके नही अने मोक्ष स्थानने जई ढुके, अने कोईथी रोकाय नही. ॥ ए६ ॥
॥इतिश्री समयसार नाटकविणे बंध घार बालबोध रूपअष्टम समाप्तः॥ ॥ दोहराः॥-बंध घार पूरन गयो, जो सुःख दोष निदान; अब बरनों संपसों मोद धार सुखखान ॥ ए॥
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