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प्रकरणरत्नाकर नाग पहेलो. अर्थः- आत्मानुं चेतन लक्षण जे. शरीरनुं जम लक्षण बे, तेथी शरीरनी ममता बोडीने चेतननुं शुरू झानपणुं तेनुं ग्रहण करी लेवु. ॥ ४ ॥
__ हवे निःकेवल श्रात्मानी शुरू चाल कहेजेः- श्रथ श्रात्मा यथाः॥ सवैया तेईसाः॥- जो जगकी करनी सब गनत, जो जग जानत जोवत जोई देह प्रमान पै देहसुँ दूसरो, देह अचेतन चेतन सोई, देह धरे प्रजु देहसु निन्न, रहे पर बन्न लखै नहि कोई, लगन वेदि विचबन बूऊत अबनिजों परतब न होई. ॥५॥
अर्थः-जे पदार्थ सर्व जगतनी करणी करेजे, एटले चतुर्गति गमन करेले, अने जे जगत्ने जाणे , श्रने जोवत के० देखेडे, प.नाना देख्ने प्रमाणे बे, पण देहथी ते जुदो बे. देह अचेतन पिंम जे अने श्रात्मा चेतनपिंम बे, देहधारी ,प्रनु बे, पण दे हथी जिन्न . देहनेविषे प्रबन्न के ढंकाई रह्यो बे, एने को लखतो नथी, पण एनां जे लक्षण ले तेने वेदी के जाणीने विचक्षण पुरुष एने उलखे. एवो ए थात्मा श्रद के इंडियथी प्रत्यद नथी. ॥ ५ ॥
___ हवे देहनी चाली कहेजेः- श्रथ देह यथाः॥ सवैया तेईसाः॥-देह अचेतन प्रेत दरी रज रेत जरी मल खेतकी क्यारी; व्या धिकी पोट अराधिकी उंट उपाधिकी जोट समाधिसों न्यारी; रे जिय देह करे सुख हानि श्ते परि तोहि तु लागत प्यारी; देह तु तोहि तजेगि निदान पितूहि तजे क्यु न देह कि यारी ? ॥ ७६ ॥
अर्थः- देह अचेतन , प्रेत दरी के जमतारूप प्रेतनी गुफा . रज के लोहि, रेत के वीर्य ते थकी नरेलो बे, अने मलरूप खेतरनो क्यारो जे.व्याधित रोगनी पोट बे, श्राराध के श्रात्माने बुपावाने चेंट ने अने उपाधिनी जोट के मेलारूप जे. एने विषे असमाधिज रहे , समाधि रेहेती नथी. माटे अरे! जीव ! एदेह ते सुखनो नाश करे ने एवो , तोपण तने ए देह प्यारो लागे . अरे! जीव! तुं समझ के ए देह नि दान तनेज तजशे पण तुं ए देहनी यारीनो त्याग करतो नथी ? ॥ ६ ॥
॥ दोहराः॥- सुनु प्रानी सद्गुरु कहै, देह खेहकी खानि; धरै सहज मुख दोष कों, करै मोडकी हानि.॥ ७ ॥
अर्थः-सद्गुरु कहे के अरे प्राणी! शांजलो. देह ते खेह के धुलनी खाण डे. एनो सहज स्वजाव वात, पित्त, कफ रूप सुःख दोषने धरनारो बे. अने मोदनी हानि करे बे. ॥ ७॥
हवे देहy वर्णन करे:-अथ देह वर्णनं:॥ सवैया इकतीसाः ॥- रेतकीसी गढी किधों मढी है मसान केसी अंदर अंधेरी
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