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________________ श्री समयसारनाटक. ६७ए सूरज करांति है; उजलता नासै जब वस्तुको विचार कीजै, पुरीकी फलकसों वरन नाति नाति है; तैसे जीव दरबको पुग्गल निमित्त रूप, ताकी ममता सो मोह मदि राकी मांति है; नेद ज्ञान दृष्टिसों सुनाव साधि लीजे तहां, साचि शुरु चेतना श्र वाची सुख शांति है. ॥ ७॥ अर्थः- जेम सूर्यकांति मणि ने तेम बीजो काश्मिरी पाषाण तेवोज बे, ने ते महा उज्वल ने, ने तेनी नीचे तहरेतहरेना रंगनी पुरी बनावी आपिये, त्यारे तेमां नात नातनो रंग देखाय; पण ज्यारे ते सूर्यकांति मणिना खन्नावनो विचार करिये,त्यारे तो तेनी कांति जे उज्वल , तेज मनमां श्रावे, अने दीगमां तो नीचेनी बनावेली रंग नी पुरणीनी जलक पडे तेथीज तरेहवार रंग वरण देखाय बे, ते रीते जीव व्यनी अशुद्ध दशानुं निमित्त कारण पुजल अव्य , तेनी ममताथी मोहरूप मदिरान जन्म त्तपणुं श्रने ज्यारे जम चेतननीनेद ज्ञान दृष्टिवडे चेतननो स्वनाव साधिये, त्यारे साची शुद्ध चेतनाज नासे. अने अवाच के वचन गोचर नही, एवीरीतनी सुख शांति बे तेज नासे. ॥ २ ॥ हवे वस्तुना संयोगथी स्वनावमा नेद पडे, ते उपर दृष्टांत आपे : अथ संयोगिका खनाव वर्णनं:॥ सवैया श्कतीसाः॥-जैसे महिमंमलमें नदीको प्रवाह एक, ताहीमें अनेक नांति नीरकी ढरनि है; पाथरको जोर तहांधारकी मरोरि होति, कांकरिकी खानि तहां कागकी करनि है; पौनकी ऊकोर तहां चंचल तरंग उठे, नूमिकी निचानि तहां नौरकी परनि है तैसे एक श्रातमा अनंत रस पुदगल, मुहकी संयोगमें विनावकी जरनि है.॥७३॥ अर्थः- जेम पृथ्वी मंगल उपर नदीनो प्रवाह एकरूप बे, अने तेज नदीना प्रवा हमां पाणीनु व्हे अनेक तरेहनुं , जे ठेकाणे नदीना प्रवाहमां मोटा मोटा पथरा श्रावी अमेला होय त्यां धार मरडाईने पमे डे, श्रने ज्यां कांकरी घणी होय त्यां का गनी करनी के० फाग एटले पाणीना जरा जनकी उठे. अने ज्यां पवननी फकोर चालती होय त्यां चंचल तरंग उठेने, अने जे ठेकाणे जमीन नीची होय त्यां जोर पडेबे, वमल थायडे, तेम यात्मजव्य ,तेने पुजल अव्यनो संयोग डे अने रस जे लेते षट्रगुणी हानि वृद्धिश्रीअनंत , तेनो संयोग थये श्रात्माने विषे विनावनी जरणी थायले. हवे श्रात्मा अने शरीर एक मेक बंधाई रह्यां बे पण लक्षण नेदे जुदा जुदा बे. ते बतावे :- श्रथ श्रात्मशरीर लहन निन्न कथन:-- ॥ दोहराः॥-चेतन लखन थातमा, जम लबन तन जाल; तनकी ममता त्यागि के, लीजें चेतन चाल ॥ ४ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002165
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages228
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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