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________________ ६७६ प्रकरणरत्नाकर नाग पहेलो. पेठे तेम कालरूपी शस्त्र शरीरने कापेले. एवं कार्य थ रथु डे तोपण मूर्खजन जे ते परमार्थने खोजतो नश्री, पण पोताना स्वार्थने माटेज चमना नारने खेंची रहे; लोग के परवस्तु जे काम क्रोधादिक ते साये लागो फिरे, अने परपुजलजोग तेथी पग्यो के हलि मलि रहे, तेथी विषयरसने जोगवतां जरा पण हटतो नथी. ॥६॥ वली जेम को जबरो मृग होय ते वृषादित्य के वृषसंक्रांतनो सूर्य एटले जेष्टमास तेना तापनेविषे श्रति तृषावंत थयो थको मृषा के० फूठी श्छा थकी पाणीने माटे अटत हे के० चटके , तेवी रीते संसारी जीव परस्वरूप मायाजालने विषे हेत राखीने एटले तेने हितकारी मानीने भ्रमरूपी नूमीने विषे ठराव करी नट नी पेठे नाची रह्यो . ते केवो ने तो के जेवो कोई दृगहीन के श्रांख विनानो पुरुष होय ने ते दोरी वाटतो होय त्यां पासे वाहुं होय ते दोरीने चावी नाखतो होय तेने ते जाणी शकतो नथी तेथी तेनी मेहनत व्यर्थ जाय . तेम मूढ प्राणी जे ने ते सुकृतनी क्रिया करेने त्यारे रोवत हासत के० अरति अने रतियें करी क्रिया करे तेथी ते करेली क्रियाना परम फलने खोई देय. ॥६५॥ हवे फरी बंधना करनार मूढ विषयिनी अवस्था कदेबेः-अथ मूढ विषयी वर्णनं: ॥ सवैया इकतीसाः॥- लिये जिढ पेच फिरे लोटन कबूतरसो, उलटो अनादि को न कहो सुलतु है, जाको फल फुःख ताही सातासो कहत सुख, सहित लपटी असी धारासी चटतु है; ऐसे मूढ जन निज संपती न लखे क्योही, मेरी मेरी मेरी निशिवासर रटतु है; याही ममतासों परमारथ विनसी जाइ, कांजीको फरस पाई पूध ज्यों फटतु है. ॥६६॥ अर्थः- जेम लोटण खबुतर होय ते जो पांख बंध करीने पेच लाग्यो तेथी उलट पालट फरेने, तेम मूढ प्राणी अनादि कालना कर्म बंध पेचमां पडेलो माटे अवलो मार्ग धरे, पण कोई रीते सवलो मार्ग धरतो नथी. अने जेनुं फल फुःख डे एवा वि षय जोगवडे जे कंईक साता उपजे, तेने सुख माने, जेम कोई मधे लपेटी तरवार नी धारने चाटे, जेमां मधनी मीगश थोमी होय ने तरवारनी धार ते मीगस चाख वा जतां जीनने बेदी नाखे तेनुं पुःख बहु थाय, तेम मूर्ख प्राणी पोतानी ज्ञानादिक संपत्तिने कदी उलखतो नथी, पण परवस्तुने रात दिवस मारी मारी मानी रह्योडे, एज फूठी ममतावडे परमार्थ जाणवानो विनाश थई जायजे; जेम कांजीना पाणीना स्पर्शथी दूध फाटी जाय, तेम ममताश्री परमारथ बगडी जाय. ॥ ६६ ॥ हवे मूढनी अहंबुछिनी वव्यवस्था कही बतावे:- श्रथ पुनः मुढ व्यवस्थाः॥ सवैया इकतीसाः॥-रूपकी न कांकहिये करमको मांक दिये, ज्ञान दवि रह्यो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002165
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages228
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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