________________
श्री समयसारनाटक.
६५ तासों कहै दीन है; धरमीको दंनी निसपृहीको गुमानी कहै, तिशना घटावै तासो कहै नागहीन है; जहां साधु गुण देखे तिन्हको लगावै दोष, ऐसो कबु उर्जनको हिरदो मलीन हे.॥६१॥
अर्थः- सरल चित्तवालाने शठ के० मूर्ख कहे, वक्ता के० कथा कीर्तन वांचनारने धीठ कहे, विनय करनारने कहे के एतो धननी आधीनताथी करे, दमावंतने नि बल कहे; इंजिय दमन करनारने श्रदाता कहे, अने मधुर नाषण करनारने कहे एतो गरीब बीहामणो , धर्मीने दंनी कहे, निस्पृहीने अहंकारी कहे , तृष्णा बगे मनारने नाग्यहीन कहे,ज्यां एवा सरलतादिक गुण देखे त्यां पूषण लगाडे, एवं उर्ज ननुं हश्यु मलीन के मेधुं होय . श्रने एवा उर्जननेज अधमाधम पुरुषनी प्रकृति जाणवी.
हवे मिथ्यादृष्टिनी अहंबुछिनुं वर्णन करे :- श्रथ मिथ्यादृष्टि वर्णन:॥ चौपाई॥- में करता में कीन्ही कैसी; अब यों करो कहौ जो ऐसी; ए विपरीत नाव है जामें; सो वरतै मिथ्यात दसामें. ॥ ६॥ दोहराः- अहं बुझि मिथ्यादसा, धरै सु मिथ्यावंत; विकल यो संसारमें, करै विलाप अनंत. ॥ ३ ॥
अर्थः- हुं कर्त्ता बुं, था वर्तमान कालमां केवी वात करूंबु, नविष्य कालमां जेवी कहीश तेवी करीश, एवी अहं बुकि ए विपरीत जाव , थने ए नाव मिथ्यात्व दशा ना ॥६५॥ जे एवी श्रहंबुकि, तेज मिथ्यात्व दशा , अने ए मिथ्यात्वदशाने धारण करे, तेज मिथ्यात्वी कहेवाय ,अने एवा पुरुषोज संसारने विषे विकल थका संसारमा नटकता दुःख सहता अनंत विलाप करेजे. ॥ ६३ ॥
हवे मूढ प्राणीनी व्यवस्था कही देखाडे :- अथ मूढ व्यवस्था कथनं:
॥ सवैया इकतीसाः ॥- रविके उदोत अस्तहोत दिनदिन प्रति, अंजुलीके जीवन ज्यों जीवन घटतु है; कालके ग्रसत बिनबिन होत बीन तन, औरके चलत मानो का उसो कटतु है; एते परि मूरख न खोजे परमारथकों, खारथके हेतु बम जारथ उट तु है; लग्यो फिरे लोगनिसों पग्यो परजोगनिसों, विषै रस नोगनिसों नेकु न हटतु है. ॥६॥ जैसे मृग मत्त वृषादित्यकी तपतिमांहि तृषावंत मृषा जल कारण अटतु है; तैसे जववासीमायाहीसों हित मानिमानि गनिगनि चमनूमि नाटक नटतु है; श्रागेकों ढुकत धाय पाडे बबरा चराय, जैसे दृग दीन नर जेवरी वटतु है; तैसे मूढ चेतन सु कृत करतूति करै, रोवत हसत फल खोवत खटतु है. ॥६५॥
अर्थः- सूर्यना उदयथी ते अस्तसुधीमां अंजबिना पाणीनी परें आयुष्य घटतुं जा यो, श्रने क्षण क्षणविषे काल जे जे ते शरीरने ग्रासे, तेथी शरीर दीण थाय बे. ए रीते तन और के शरीर तरफ काल असी रह्यो, एटले जेम शस्त्र कोई वस्तुने का
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org