________________
६७४
प्रकरणरत्नाकर नाग पहेलो. रे ते उगने उर्जन करी जाणे, पण पोते परवश पड्यो तेथी नाना प्रकारना संकट स हन कर्या करे , तेम अनादि कालनो मिथ्यात्वी जीव परवश पडेलो नाना प्रकारना संकट सहन करे, ते श्राप प्रहर संसारमा विकल थ ने डोले, पण विश्राम लिये नही, एटलामां ज्ञान कलानो नास थयो, तेवारे अंतरमा उदासी थयो तो पण कर्म ना उदयरूप व्याधिवडे समाधि लेतो नश्री, श्राश्रवमांज रहे ॥ ५ ॥ हवे अधम पुरुषनी दशा दृष्टांत दश्ने दृढावे :- अथ अधम पुरुष यथाः
॥ सवैया इकतीसाः॥-जैसें रांक पुरुषके नाये कानी कोमी धन, जलूवाके नाय. जैसे संकाई बिहान है; कूकरके नाये ज्यों पिंमोर जिरवानी मग, सूकरके नाय ज्यों पुरीष पकवान है; वायसके नाये जैसे नींबकी निंबोरी दाख, बालकके नाये दंत कथा ज्यों पुरान है; हिंसकके जाये जैसे हिंसामें धरम तैसें, मूरखके जाये सुन बंध निरवान है
अर्थः- जेम रांक पुरुषने काणी कोढी ने तेहीज धन मनाय बे, अने जेम घुबडने संध्याकाल प्रजात मनाय बे,श्रने कुकमाने पिंडोर जीरवानी के गाय नेसनुं पाणी ते दहींनो थमो मनाय बे, अने सूकर के सूअरने पुरीष के० विष्टा तेज पक्वान्न मना यो श्रने कागडाने लींबोडी तेज बाद जेवी मनायडे, अने वालकने दंत कथा के० लोकनी कथा डे तेज पुराण मनाय बे, ने हिंसकने हिंसामाज धर्म मनाय बे, तेम ज मूर्खने पुण्यबंध ते निरवाण के मोदपद मनाय ने, ए श्रधम पुरुषनी दशा जाणवी. हवे अधमाधम पुरुषनी दशा दृष्टांतेकरी दृढावेजेः-अथ अधमाधम पुरुष यथाः
॥सवैया इकतीसाः॥- कुंजरको देखि जैसे रोष करीनुसे खान, रोष करै निधन बिलोकि धनवंतकों; रेनके जगैयाको विलोकि चोर रोष करै, मिथ्यामति रोष करै सुनत सिझांतको, हंसकों विलोकी जैसे काग मनि रोष करे,अनिमानी रोष करै देख तमहंतकों; सुकविकों देखि ज्यों कुकवि मन रोष करै त्योंही उरजन रोष करै देखि संतको.
अर्थः- जेम हाथी जोश्ने कुतरा रीशे जराईने लुकेले, जेम निर्धन पुरुष धनवान ने जोईने रीशे जराय बे, जेम राते जागनार पुरुषने जोईने चोर रीशे नराय , जेम मिथ्यात्वी सिद्धांतने शांजली रीशे जराय बे, जेम हंसने जोईने कागडो रीशे जराय बे, जेम महंतने जोईने अनिमानी रीश करे , जेम सुकवि के सारा कविने जोई ने कुकवि के नगरो कवि रीशे बले बे, तेम अधमाधम पुरुष साधुने जोईने पुष्ट मन वमे रीशे जराय बे. ॥६०॥
हवे वली अधमाधम पुरुषनी चाल कहेः-श्रथ पुनः अधमाधम पुरुष वर्णनं:
॥ सवैया श्कतीसाः ॥-सरलकों सठ कहै वकताको धीठ कहै, बिनो करे तासों कहै धनको अधीन है; बमीको निवल कहै दमीकों श्रदत्ती कहै, मधुर वचन बोलै
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org