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________________ श्री समयसारनाटक. ६७३ ल बाह्य व्यवहारमा कठोर अने अन्यंतर कोमल , तेम मध्यम पुरुष पण बहारथी कठण अने हश्यामां कोमल होय . श्रधम पुरुष बोर समान बे; जेम बोर बाह्य व्य वहारने विषे नरम देखाय डे, ने मांडेथी कठोर बे, तेम अधम पुरुष बहार नरमाश राखे पण अंतरमा संग के पाषाण जेवो कठण होय. अने अधमाधम पुरुष पुंगी फल के सोपारी जेवो; जेम सोपारी बहारने अंदर सर्वांगमां कगेर बे, तेम अध माधम पुरुष मांहे अने बहार सघले कठोर होय . ॥५६॥ हवे उत्तम पुरुषनी दशा कही बतावे:-अथ उत्तम पुरुष कथन:॥सवैया इकतीसाः।-कीचसो कनक जाके नीचसो नरेसपद, मीचसी मित्ताई ग रवाई जाके गारसी; जहरसी जोग जानि कदरसी करामति, हहरसी हौस पुदगल बवि बारसी; जालसों जग विलास नालसों नुवन वास, कालसों कुटंब काज लोक लाज लारसी; सीसों सुजश जानै वीउसों वखत मानै ऐसी जाकी रीति ताही वंदत वनारसी. ॥२७॥ अर्थः- जे पोताना हैयानेविषे सुवर्णने कादव सरखं जाणे, श्रने नरेश पद के राज्य गादीने नीच सरखी जाणे, मित्राने मीचसी के मरण जेवी जाणे, ने गरवाई के वमाई ते लीपवानी गार जेवी जाणे, रसायन प्रमुख व्यजोगनी जातिने जे फेर सरिखी जाणे, मंत्र शक्तिव जे करामत थाय तेने कहर सरखी जाणे, देशी जापाने विषे इहर के अनर्थ ते सरखी होंस , अने पुद्गलनी बबी ते राख समान जाणे, माया रूप जाल तथा जगत्नो विलास तेने जाल जेवो जाणे, जुवनवास के घरवास ने तीरना नाल समान जाणे, कुटुंब कार्यने काल समान करी जाणे, लोकलाज रा खवी ते मोहमानी लाल जेवी जाणे बे, सुयशने सीट के० नाकना मेल समान जाणे, जाग्यो दयने विष्टासमान जाणे, एवीजेनी रीत होय तेने बनारसीदास वंदना करे ५७ हवे मध्यम पुरुषनी दशा बतावे बेः- अथ मध्यम पुरुष यथाः॥ सवैया इकतीसाः॥- जैसे कोउ सुजट सुनाय ठग मूरखाय, चेरा नयो उगनी के घेरामें रहतु है गोरी उतरि गई तब तांहि सुधि नई, पस्यो परवस नाना संकट सहतु है; तैसेही अनादिको मिथ्याति जीव जगतमें, मोले धागे जाम विसराम न गहतु है; ज्ञान कला नासी जयो अंतर उदासी में तथापी जदै व्याधिसों समाधि न सहतु है. ॥ ५७ ॥ अर्थः-जेम कोई खनावे सुजट होय ने तेने कोश्ग मले नेते सुनटने कोश्जडी मूली खवरावे, तेथी ते सुजट गनो चेलो थक्ष जाय, अने उगना घेरामां पड्यो रहे, पीते सुनटे मूली खाधेली तेनी असर नीकली जाय ने पालो पोतानी शुधिमां श्रावे, तेवा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002165
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages228
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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