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प्रकरणरत्नाकर जाग पहेलो. . अर्थः-त्रणे लोक तथा त्रणे काल तेनेविषे जगत्वासी सर्व जीवने पूर्व संचित कर्म उदय थावे, ने ते पोतानो कडवो तथा मीठो रस थापेजे, तेणे करी ने कोई - दीर्घ आयुष्य नोगवी मरेडे, ने कोई अल्प श्रायुष्यमांज मरेडे, कोई कुःखी बे, श्रने
कोई सुखी होय, कोई समचित के सम जावमा रहेडे, एम पोत पोतानी कमाई थी सर्व जीव सुखी अथवा फुःखी बे. तेने मूढ प्राणी जे जे ते पोताना साधन माने डे के, जो में फलाणाने जीवाड्यो, फलाणाने मारी नाख्यो, फलाणाने पुःखी कीधो, ने फलाणाने सुख प्राप्यु. एवो मूढ अहं बुद्धिथी नर्ममा जुल्यो फरेडे, अने ए नूल एनी मटती नथी, एज मिथ्या धर्म मूढने कर्मबंधनो हेतु थाय बे. ॥५४॥
हवे फरी मूढनीज व्यवस्था कहेजेः- अथ मूढता कथनंः॥ सवैया इकतीसा॥-जहांलों जगतके निवासी जीव जगतमें, सबै असहाको ऊ काहुको न धनी है; जैसी जैसी पूरव करम सत्ता बांधि जिन, तैसी तैसी उदै. अवस्था श्राइ बनी है; एते परि जो कोज कहै कि में जीवावो मारो इत्यादि अने क विकलप वात घनी है, सो तो अहं बुछिसों विकल नयो तिहुँ काल, मोले निज श्रातम सकति तिन्ह हनी है. ॥ ५५ ॥ . ___ अर्थः- ज्यांसुधि जीव जगत्मां निवास करेले त्यांसुधी एक बीजाने असहाय पणे रहेने, कोई कोनो सहायकारी नथी, तेम कोई कोश्नो धणी नथी, श्रने जेवी जेवी पूर्व कालनेविषे कर्मसत्ता बांधी राखी, तेवी तेवी उदय कालनेविषे जीवनी वस्था बने; एटला उपर जे कोई कहे के में थाने जीवाड्यो ने थाने मार्यो, इत्या दि अनेक मनना विकल्पनी वातो घणी , ते सघली अहंबुद्धि थकी थाय , अने ते जीव त्रणे कालने विषे अहंकार बुद्धिमां मोले ; तेणे शुरू ज्ञानशक्तिने हणी ने अने ते जीवनी ए मूढ अवस्था कडेवाय बे ए रहस्य बे. ॥५६॥ हवे चार प्रकारे करीने जीवनी व्यवस्था उपर चार दृष्टांत आपेजेः
श्रथ चार प्रकार जीव व्यवस्था कथनं:॥ सवैया इकतीसाः॥- उत्तम पुरुषकी दशा ज्यों किसमिस जाख, बाहिज अनि तर विरागी मृा अंग है; मध्यम पुरुष नारीयर केसी नांति लिये, बाहिज कछिन हिय कोमल तरंग है; अधम पुरुष बदरीफल समान जाके, बाहिरसों दिसै नरमा दिल संग है; अधमसों अधम पुरुष पुंगीफल सम, अंतरंग बाहिर कठोर सरवंग है __ अर्थः- उत्तम पुरुषनी दशा किसमिस प्राद जेवी बे, जेम किसमिस सादब हिरथी ने अंदरथी कोमल बे; तेमज उत्तम पुरुष बाह्य व्यवहार श्रने अत्यंतर व्य हारमा पण मृड अंग के कोमल डे; मध्यम पुरुष नारीयल सरीखो , जेम नारी
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