________________ शतः शतः वंदन हो सत्यपुर के विरल विभूति को: जिस तीर्थ की प्रशंसा अनंत लब्धि निधान श्री गौतमस्वामी ने अष्टापद तीर्थ पर जगचिंतामणी सूत्र के अन्तर्गत की थी / एसे महातीर्थ में अनेक प्रभावशाली महापुरूषोने जन्म लीया है / एसे सत्यपुर नगर में आसवाल जातिवान राजमल्ल नाम का धन वैभव से युक्त श्रावक था / धर्मपत्नी मूलीदेवी जो स्वयं आराधक व धर्मनिष्ठ नारी थी / वहात समय पसार होने के बाद परिवार में पुण्यशाली पुत्र का जन्म हुआ / सूर्य जैसा तेजस्वी होने के कारण उसका नाम भानुराम रखा / जो मातपिता के सुसंस्कारो के सिंचन से धर्माभिमुख हुआ / -अकवार परमपुण्योदय से सत्यपुर नगरमें आचार्य देवसूरिजी का आगमन हुआ / उनके उपदेश से वैराग्य वासित वनकर भानुराम ने संयमग्रहण किया / उनका नाम भावविजय रखा / गुरु निश्रा को प्राप्त करके तप-जप ज्ञान क्रिया में आगे बढते योग्यता देखकर गुरुदेव ने जोधपुर नगरम भावविजय को गणिपद से अलंकृत किया / -भावविजय गणि का पूर्वकृत कर्म के अनुसार आंखो का तेज नष्टहुआ / गुरुदेवने साधुओ को सेवा मे रखकर पाटण में गणिवर को स्थिरवास रखा स्वकृत निंदा व परसुकृत की अनुमोदना के साथ अपनी आराधना में तल्लीन बन गये / - एकवार गणिवर को रात्रि में स्वप्न आया उसमें देवने अंतरिक्ष तीर्थ का इतिहास सुनाया / प्रातः संघ को इक्कट्ठा करके वात की मेरे शिरपुर जाने की इच्छा है संघ तैयार हो गया / चतुर्विध संघ के साथ शिरपुर गये / लेकिन आंखों का तज न होने के कारण दर्शन नहि हुए / इसलिए वहोत पश्चाताप करने लगे - उस समय एकाग्रता के साथ निर्णय किया कि जब तक परमात्मा के दर्शन नहि होगे तव तक अन्नजल का त्याग / तीन दिन के बाद शासन देव की सहाय से पुनः आंखो का तेज प्राप्त हुआ / अत्यंत भाव विभोर होकर परमात्मा के दर्शन हुए / शासन देवने नया मंदिर बनाने का आदेश दिया / गणिवर ने संघ समक्ष उपदेश देकर मंदिर का जीर्णोद्धार कराया / वी.सं. - 1715 में गणिवर ने प्रतिष्ठा करायी. उस समय अंतरीक्ष पार्श्वनाथ की मूर्ति पवासण से एक अंगुल अद्धर थी / जगतगुरु हीरसूरिजी के शिष्य विजयसेन सूरिजी के शिष्य देव सुरिजी के शिष्य भावविजयजी थे / कोटि कोटि वंदन हो सत्यपुर के महापुरुष को / Tejas Printers. (Hasmukh Shah) PHONE : P.P. 5356476 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org