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जैन आगम : एक परिचय]
ওভ (२) जिनमें मूल और भाष्यों का संमिश्रण तो हो गया है, किन्तु जिन्हें अलग-अलग किया जा सकता है; जैसे दशवैकालिक और आवश्यक सूत्रों की नियुक्तियाँ।
(३) जिनमें मूल और भाष्य का ऐसा संमिश्रण हो गया है जिसे अलग-अलग नहीं किया जा सकता; इन्हें आजकल भाष्य या बृहद्भाष्य कहा जाता है; उदाहरणार्थ-निशीथ आदि की नियुक्तियाँ ।
नियुक्तियों के नाम- दस आगमों पर नियुक्तियाँ प्राप्त होती हैं- (१) आवश्यक (२) दशवैकालिक (३) उत्तराध्ययन (४) आचारांग (५) सूत्रकृतांग (६) दशाश्रुतस्कन्ध (७) बृहत्कल्प (८) व्यवहार (९) सूर्यप्रज्ञप्ति (१०) ऋषिभाषित। ये दस नियुक्तियाँ आचार्य भद्रबाहु ने लिखी हैं।
इनमें से सूर्यप्रज्ञप्ति और ऋषिभाषित पर लिखी दो नियुक्तियाँ वर्तमान में उपलब्ध नहीं हैं। सूर्यप्रज्ञप्तिनियुक्ति का उल्लेख मलयगिरिवृत्ति में हुआ है। वहाँ बताया गया है कि इसमें खगोल ज्योतिष सम्बन्धी तथ्यों का सुन्दर निरूपण है। ऋषिभाषित प्रत्येकबुद्धों द्वारा उपदिष्ट आगम है। इस पर आचार्य भद्रबाहु ने जो नियुक्ति लिखी वह अब उपलब्ध नहीं है।
इसके अतिरिक्त औघनियुक्ति, पिंडनियुक्ति, कल्पनियुक्ति और निशीथ-नियुक्ति भी मिलती हैं किन्तु ये क्रमशः आवश्यकनियुक्ति, दशवैकालिक नियुक्ति, बृहत्कल्पनियुक्ति और आचारांगनियुक्ति की पूरक हैं। नियुक्तियों का संक्षिप्त परिचय निम्न है(१) आवश्यकनियुक्ति- आचार्य भद्रबाहुरचित दस छठवें
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