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[जैन आगम : एक परिचय निज्जुत्तीओ' (संख्यात नियुक्तियाँ) पाठ मिलता है। इससे यह स्पष्ट है कि आगमकाल में भी नियुक्तियों की परम्परा थी। ऐसा अनुमान है कि जिस प्रकार अध्ययन कराते समय आजकल के प्रोफे सर विद्यार्थियों को नोट्स आदि लिखाते हैं, उसी प्रकार प्राचीन आचार्य शिष्यों को वाचना देते समय विशिष्ट शब्दों के विशिष्ट सन्दर्भो में विशिष्ट और उपयुक्त अर्थ का स्पष्टीकरण करते होंगे। शिष्यों को आगम में प्रयुक्त शब्दों को हृदयंगम कराने के लिए यह आवश्यक था। इन्हीं का संग्रह नियुक्ति कहलाया। नियुक्तिकार भद्रबाहु ने इन्हीं संग्रहों को मूल आधार बनाकर नियुक्तियों की रचना की । यही कारण है कि नियुक्तियों में कुछ गाथाएँ बहुत प्राचीन हैं और कुछ अर्वाचीन।
नियुक्तियों की रचयिता और रचनाकाल-नियुक्तियों के रचयिता आचार्य भद्रबाहु इतिहासप्रसिद्ध ज्योतिर्विद् वराहमिहिर के भाई थे। भद्रबाहु स्वयं अष्टांगनिमित्त और मंत्रविद्या के पारगामी विद्धान थे। वराहमिहिर के आधार पर इनका समय वि. संवत् ५६२ के लगभग है और नियुक्तियों का रचनाकाल वि.सं. ५०० - ६००के मध्य है। ___ नियुक्तियों के प्रकार- विषय की व्याख्या के आधार पर अनुयोग द्वार में नियुक्तियों के तीन प्रकार बताये गये हैं-(१) निक्षेपनियुक्ति, (२) उपोद्घातनियुक्ति और (३) सूत्रस्पर्शिकनियुक्ति।
डा. घाटके ने Indian Historical Quarterly, Vol, 12. p. 270 में वर्तमान में उपलब्ध नियुक्तियों के तीन भेद बताये हैं
(१) मूल नियुक्तियाँ- जिनमें काल के प्रभाव से कुछ भी संमिश्रण न हुआ है, उदाहरणार्थ-आचारांग और सूत्रकृतांग की नियुक्तियाँ।
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