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________________ जैन आगम : एक परिचय] करके मुख्य रूप से पारिभाषिक शब्दों की व्याख्या की गयी है। नियुक्ति का लक्षण- आवश्यकनियूक्ति (गाथा ८३) में नियुक्ति का लक्षण बताते हुए कहा गया है- सूत्रार्थयों: परस्परं निर्योजन सम्बन्धनं नियुक्तिः (सूत्र और अर्थ का निश्चित सम्बन्ध बताने वाली व्याख्या को नियुक्ति कहते हैं)। इस प्रकार नियुक्ति निश्चित अर्थ का प्रतिपादन करने वाली युक्ति है। नियुक्तियों की रचनाशैली- नियुक्तियों की रचना निक्षेप पद्धति पर हुई है। निक्षेप पद्धति का अभिप्राय है- किसी एक पद के अनेक संभावित अर्थ बताने के बाद उनमें से अप्रस्तुत अर्थों का निषेध करके प्रस्तुत अर्थ को ग्रहण करना। उदाहरणार्थ-'अज' शब्द के बकरा और तीन वर्ष पुराना यव अथवा चावल दोनों अर्थ होते है। किन्तु यज्ञ के सम्बन्ध में बकरा अर्थ का निषेध करके तीन वर्ष पुराना चावल ग्रहण करना। यह शैली जैन-न्याय की बहुत ही प्रिय शैली रही है। नियुक्तिकार आचार्य भद्रबाहु (द्वितीय) ने भी इसी शैली को उपयुक्त माना है । आवश्यकनियुक्ति (गाथा ८८) में उन्होंने लिखा है- एक शब्द के अनेक अर्थ होते है; किन्तु कौनसा अर्थ किस प्रसंग के लिए उपयुक्त है, श्रमण भगवान महावीर के उपदेश के समय कौन-सा अर्थ किस शब्द से सम्बद्ध रहा हैआदि सभी बातों को दृष्टि में रखते हुए, सही दृष्टि से अर्थ निर्णय करना और उस अर्थ का मूल सूत्र से सम्बन्ध स्थापित करना नियुक्ति का प्रयोजन है। इस प्रकार नियुक्ति की शैली न्याय तथा भाषा वैज्ञानिक अनुसन्धान की दृष्टि से बहुत ही उचित है। नियुक्तियों के आधार- समवायांग, नन्दी और स्थानांग सूत्र में जहाँ द्वादशांगी का परिचय दिया गया है वहाँ 'संखेज्जाओ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.002151
Book TitleAgam ek Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages106
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, History, & agam_related_other_literature
File Size1 MB
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