SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 75
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७४ [जैन आगम : एक परिचय द्वीपसागर-प्रज्ञप्ति, ज्योतिषकरंडक, अंगविद्या, यौनिप्राभृत आदि। प्रकीर्णक साहित्य की विशेषताएँ- सभी प्रकीर्णकों में जीवम को शुद्ध बनाने की प्रक्रिया बताई गई है। साधक के जीवन में निर्मलता और पवित्रता भरने के बारे में विस्तारपूर्वक चिन्तन हुआ है। कुछ प्रकीर्णकों में ज्योतिष और निमित्त सम्बन्धी विषयों पर भी चिन्तन हुआ है। इस प्रकार प्रकीर्णक साहित्य साधकों के लिए तो उपयोगी है ही, व्यावहारिक जीवन में भी इसका काफी महत्व है। आगमों का व्याख्या साहित्य आगम गुरु-गम्भीर ज्ञान के सागर हैं। इनके रहस्यों को स्पष्ट करने के लिए व्याख्या साहित्य की रचना हुई। यह व्याख्या साहित्य भी काफी विशाल है। इसे साधारणतया पाँच भागों में विभक्त किया जाता है (१) नियुक्तियाँ (निज्जुत्ति) (२) भाष्य (भास) (३) चूर्णि (चुण्णि) . (४) संस्कृत टीकाएँ (५) लोकभाषाओं में लिखा हुआ व्याख्या साहित्य-टब्बा। नियुक्तियाँ ये आगम साहित्य पर सर्वप्रथम प्राकृत भाषा में लिखी गयी पद्यबद्ध टीकाएँ हैं। इनमें मूल ग्रन्थ के प्रत्येक पद पर व्याख्या न Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002151
Book TitleAgam ek Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages106
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, History, & agam_related_other_literature
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy