SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 73
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ जैन आगम : एक परिचय विभिन्न नक्षत्रों तथा तिथियों में विभिन्न कार्य करने का निर्देश है। संक्षेप में यह ग्रन्थ फलित ज्योतिष सम्बन्धी विशिष्ट जानकारी देता है । ७२ (९) देवेन्द्रस्तव (देविंदथव ) - इस प्रकीर्णक में ३२ देवेन्द्रों का विस्तारपूर्वक वर्णन हुआ है । इसमें ३०७ गाथाएँ हैं । विषयवस्तु सर्वप्रथम इसमें ३२ प्रकार के देवेन्द्रों का विस्तारपूर्वक वर्णन है । उसके बाद ८ प्रकार के व्यन्तर देवों, ज्योतिषी देवों और वैमानिक देवों का वर्णन है । इसमें ३२ प्रकार के देवेन्द्र कहकर भी अधिक इन्द्रों का वर्णन है । विशेष- इस ग्रन्थ में ३२ प्रकार के इन्द्र कहे गये हैं, जबकि मान्यता ६४ इन्द्रों की है- भवनपति देवों के २०, बाणव्यन्तरों के ३२ ज्योतिषी देवों के २ और वैमानिकों के १० । इसके रचियता भी वीरभद्र हैं । (१०) मरणसमाधि ( मरणसमाही ) - इस प्रकीर्णक का दूसरा नाम 'मरण- विभक्ति' भी है । यह प्रकीर्ण अन्य सभी प्रकर्णकों से बड़ा है। इसकी रचना (१) मरणविभक्ति (२) मरणविशोधि (३) मरणसमाधि (४) संलेखना श्रुत (५) भक्तपरिज्ञा ( ६ ) आतुरप्रत्याख्यान (७) महाप्रत्याख्यान (८) आराधना - इन आठ ग्रन्थों के आधार पर हुई है । विषयवस्तु - इसमें आचार्य ने समाधिमरण के कारणभूत १४ द्वार बताये हैं । इन १४ द्वारों के नाम ये हैं - (१) आलोचना ( २ ) संलेखना (३) क्षमापना (४) काल (५) उत्सर्ग (६) उद्ग्रास Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002151
Book TitleAgam ek Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages106
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, History, & agam_related_other_literature
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy