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जैन आगम : एक परिचय]
७१ विषयवस्तु- इसमें समस्त दुष्प्रवृत्तियों का परित्याग करके मन-वाणी-शरीर को संयम में रखकर हँसते-हँसते मृत्यु का वरण करने की प्रेरणा है। संथारे की साधना से मृत्यु को सफल बनाने का उपदेश है। अतीत काल में संथारा करने वाली कुछ महान आत्माओं की प्रशंसा भी इस ग्रन्थ में की गयी है।
इस पर गुणरत्न ने अवचूरि की रचना की है।
(७) गच्छाचार पइन्ना- यह प्रकीर्णक महानिशीथ, बृहत्कल्प व व्यवहार सूत्रों के आधार पर लिखा गया है। इसमें गच्छ अर्थात् समूह में रहने वाले श्रमण-श्रमणियों के आचार का वर्णन है। इसमें १३७ गाथाएँ हैं।
विषयवस्तु- इसमें बताया गया है कि जो श्रमण आध्यात्मिक साधना से अपने जीवन की उन्नति करना चाहता है, वह गच्छ में ही रहे । इसमें गच्छ का महत्व प्रतिपादन किया गया है, साथ ही श्रमण-श्रमणियों के आचार-व्यवहार का भी विस्तृत वर्णन है।
इस पर आनन्दविमल सूरि के शिष्य विजयविमल गणि ने टीका लिखी है।
(८) गणिविद्या (गणिविज्जा)- यह ज्योतिष का महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। इसमें केवल ८२ गाथाएँ हैं।
विषयवस्तु- इसमें दिवस, तिथि, नक्षत्र, करण, ग्रहदिवस, मुहूर्त, शकुन, लग्न और निमित्त इन नौ विषयों का विवेचन है। इनमें क्रमश: पहले से बाद के विषयों को बलवान बताया है। इसमें होरा का भी वर्णन है।
इस ग्रन्थ में शुभ-अशुभ तिथियाँ, नक्षत्रों, स्थिर नक्षत्रों एवं
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