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[जैन आगम : एक परिचय
रहता है। इसमें मन को वश में करने के अनेक दृष्टान्त दिये गये हैं। भक्तपरिज्ञामरण का फल अच्युत कल्प, सर्वार्थसिद्ध अथवा मुक्ति प्राप्त करना बताया है।
इसके रचयिता वीरभद्र हैं और गुणरत्न ने इस पर अवचूरि लिखी है।
(५) तन्दुलवैचारिक (तन्दुलवेयालिय)- इसमें १०० वर्ष की आयु वाला मनुष्य कितना तन्दुल (चावल) खाता है, इस बात पर विस्तृत चिन्तन होने के कारण इसका नाम 'तन्दुलवैचारिक' पड़ गया। वैसे इसमें मुख्य रूप से गर्भ विषयक वर्णन है। इसमें १३९ गाथाएँ हैं । बीच-बीच में कुछ गद्यसूत्र भी हैं।
विषयवस्तु- सर्वप्रथम भगवान महावीर को नमस्कार किया गया है। फिर मनुष्य के गर्भवास के काल का वर्णन है । गर्भस्थ मनुष्य के मुहूर्त, उसके श्वासोच्छ्वास, गर्भ में स्थित जीवों की अधिकतम संख्या, गर्भ समय के आहार आदि का वर्णन है। माता-पिता के बालक में तीन-तीन अंग भी बताये हैं।
गर्भज जीव की दस दशाओं का भी वर्णन है। व्यावहारिक दृष्टि से काल की गणना की गयी है। स्त्रियों की प्रकृति का विस्तृत वर्णन है। सबसे अन्त में शरीर को जन्म-जरा-मरण आदि व्याधियों का घर बताकर सम्पूर्ण दुखों से मुक्ति प्राप्ति के प्रयास की प्रेरणा दी गयी है।
(६) संस्तारक- इसमें मृत्यु के समय अपनाने योग्य तृण आदि की शैया का वर्णन है । इस ग्रन्थ में १२३ गाथाएँ हैं।
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